________________ वायु तत्त्व निर्जरा किये हुए कर्मों की राख को उड़ाकर साफ कर देता है और आकाश तत्त्व साधक के चारों ओर एक कवच का निर्माण करके उसकी शक्ति को बढ़ाता है, जिससे सांसारिक विकार उसकी आत्मा, मन और शरीर में प्रवेश न कर सके। ___ "णमो सिद्धाणं'' णमो अरहंताणं की तरह यह पद भी विशिष्ट है। इसका ध्यान साधक को लाल रंग से करना चाहिए। इस पद में दो नासिक्य वर्ण हैं, जो कि मन्त्र शास्त्र की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। क्योंकि इन वर्गों के उच्चारण के समय ध्वनि तरंगें सीधी ब्रह्मरंध्र तथा मस्तिष्क के ज्ञानवाही और क्रियाशील तन्तुओं से टकराती हैं, जो अत्यधिक शक्ति को उत्पन्न करने वाली होती हैं। इसमें णमो' और 'ण' आकाश तत्त्व, 'स' और 'द' जल तत्त्व, 'ध' पृथिवी और 'इ' अग्नि तत्त्व माना गया है। इस प्रकार इसमें पृथ्वी, अग्नि, जल और आकाश तत्त्वों की मौजूदगी है। इसके ध्यान से धारणाशक्ति, दमनशक्ति एवं दया आदि गुणों की वृद्धि होती "णमो आयरियाणं' इस पद में पाँच वर्ण अनुनासिक हैं। अनुनासिक ध्वनियों के बाहुल्य से इसका महत्त्व अत्यधिक रूप से स्वीकार किया जाता है। मन्त्रशास्त्रों के अनुसार इस पद का पीले रंग के साथ ध्यान किया जाता है। पीला रंग ज्ञानवाही तन्तुओं को और अधिक संवेदनशील करके शक्तिशाली बनाता है। इसके ध्यान से साधक में मन में सहसगुणी अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसमें णमो' और 'ण' आकाशतत्त्व, 'आ', 'य' और 'या' वायुतत्त्व तथा 'रि'अग्नितत्त्व के प्रतीक हैं। - "णमो उवज्झायाणं' इस पद का ध्यान साधकों के लिए नीले रंग के साथ करना चाहिए। इसकी साधना से साधक में क्षमाशीलता आदि भावों का विकास होता है। इस पद में रहने वाले ‘णमो' एवं 'ण' आकाश तत्त्व, 'उ' और 'ज' पृथ्वी, 'व' एवं 'झा' जल . तत्त्व और 'य' वायुतत्त्व के बीज हैं। इस प्रकार चारों तत्त्वों के मौजूद होने और अग्नि तत्त्व के अभाव के कारण यह साधक को अत्यधिक शीतलता का भी कारण होता है। * "णमो लोए सव्वसाहूणं' महामन्त्र के अन्तिम पद स्वरूप यह पद साधक को इन्द्रिय एवं मनोविजेता बनाता है। जिससे साधक की विचारधारा शुद्ध एवं ऊर्ध्वगामी होती है। इस पद का ध्यान काले या गहरे नीले रंग से किया जाता है। चूंकि इस पद में आकाश तत्त्व की अधिकता रहती है। इसमें भी आकाश, पृथ्वी, वायु और जल तत्त्व की मौजूदगी है। ध्यानसाधना के क्षेत्र में लाल और काले रंग का विशेष महत्त्व माना जाता है। आचार्य शुभचन्द्र ने पद मन्त्रों में पञ्चपरमेष्ठी सम्बन्धी अरिहंतसिद्धआयरियउवज्झायसाहू', 'अरहंतसिद्ध', 'अरंहत', 'सिद्ध', 'ॐ हां ही हूँ, हौं हः', 'असिआउसा नम:' के अतिरिक्त भी अनेक पद मन्त्रों की प्ररूपणा की है। यथा - 'ॐ अर्हत्सिद्धसयोग 165