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________________ दो शब्द प्रस्तुत शोध प्रबंध में भारतीय योग परम्परा का विस्तार से चित्रण किया गया है। ब्र. राजेन्द्र जैन ने प्राचीन जैन साहित्य-प्राकृत व संस्कृत के उद्धरणों द्वारा यह सिद्ध करने का सफल प्रयास किया है कि योगविद्या भारतवर्ष की उत्कृष्ट और अत्यंत प्राचीनकालीन विद्या है। अपने कथन की पुष्टि में शोध प्रबन्ध लेखक ने कतिपय प्रचलित विशिष्ट पत्रिकाओं में ध्यान और सम्बंधित अंग्रेजी विषयक पुस्तकों का भी उपयोग किया है अपने कथन को पुष्ट करने के लिए प्रबंध, लेखक की योग व ध्यान बाबद विस्तृत सोच प्रकट करता है। इस प्रबंध में विशेषतः आचार्य शुभचन्द्र रचित "ज्ञानार्णव" तथा उसी से सम्बंधित उपलब्ध अन्य कृतियों का भी उल्लेख किया है। लेखक ने द्वितीय अध्याय में "ज्ञानार्णव" ग्रन्थ का सम्बद्ध सारांश दे दिया है। योग एक ऐसी विद्या है जिसमें मनुष्य बाह्य दृष्टि से परे हटकर अपनी अन्तर्दृष्टि पर एकाग्रचित्त होकर चेतनतत्त्व से भली-भांति परिचित हो जाता है। इसकी अंतिम परिणति इस असार संसार से मुक्ति है, जिन केवली की स्थितियाँ तप और ध्यान हैं। ध्यान को जैन परम्परा में विशिष्ट और उच्च स्थान दिया गया है। योग परम्परा का ऐतिहासिक वर्णन दृष्टव्य है। कृति में ध्यान का विशद वर्णन विभिन्न जैन शास्त्रों के उदाहरण देते हुए सरल एवं स्पष्ट बोधगम्य भाषा में, किया गया है। इससे मेरा तात्पर्य है कि ध्यान योग के विभिन्न भेदों-प्रभेदों की विशद व्याख्या की गई है। इसी क्रम में ध्यान की विविध प्रक्रियाओं पर प्रकाश डाला गया है। इसके अंतर्गत इस बात पर प्रचुर बल दिया गया है कि ध्यान कषाय-निग्रह का सर्वोत्तम उपाय है। अथवा इसे इन्द्रिय-विजय शब्द से भी अभिहित किया जा सकता है। - इन्द्रिय-निग्रह पर विचारते हुए लेखक ने बारहाभावनाओं का चिंतन करतेहुए मानव अपने विकारी भावों पर किस बुद्धि बल से विजय प्राप्त कर स्वयं को निर्मल कर लेता है, उसे इसे आकर्षक भाषा शैली में व्यक्त किया है। ध्यान-योग के महत्त्व और उसके फल पर भी दृष्टिपात किया है। ध्यान के तीन प्रकारों पर विचार करते हुए सर्वश्रेष्ठ शुक्ल ध्यान की और इंगित करते हुए इसे ही मोक्ष प्राप्ति का सर्वोच्च साधन बतलाया है। अन्त में योग वर्णित दर्शन में लब्धियों के साथ-साथ जैन योग और बौद्धयोग में इनपर तुलनात्मक दृष्टि डाली है। औरतो-और अपने विषय को स्पष्ट करने में लेखक ने गणधर देव में पाई जाने वाली आठ ऋद्धियों पर प्रकाश डाला है। ये ऋद्धियां कमोवेश रूप में मानव के ध्यान योग में सहायक सिद्ध होती हैं।। लेखक ने अपनी विषय वस्तु को उचित रूप से प्रतिपादित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इस तथ्य से नहीं मकरा जा सकता कि प्रबंध को आद्योपांत पढने से मानव योग एवं ध्यान जैसे आध्यात्मिक विषय को सहजता से हृदयंगम कर लेता है. जिसका श्रेय लेखक की प्रांजल भाषा व प्रस्तत करने की शैली को जाता है। प्रस्तुत शोध प्रबंध में डॉ. राजेन्द्र जैन की भरपूर अध्यवसायतो व कठोर परिश्रम का पता चलता है। डॉ. विमलचन्द जैन एम.ए.,पी.एच.डी. (हिन्दी) भोपाल दिनांक ............ (xiii)
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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