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________________ शोध विषयक विश्लेषण निर्देशक : प्रोफेसर एल.सी. जैन, जबलपुर "भारतीय योग परम्परा और ज्ञानार्णव' विषय पर डॉ. राजेन्द्र कुमार जैन द्वारा प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के रूप में एक अनुपम कृति को तैयार करने का अद्वितीय प्रयास किया गया है। जैनदर्शन में आचार्य शुभचन्द्र रचित (लगभग 10-11वीं सदी में)ज्ञानार्णव आध्यात्मिक ध्यान योग का प्रतिनिधि ग्रन्थ माना जाता है जिसमें ध्यान साधना से संबंधित प्रायः सम्पूर्ण सामग्री उपलब्ध है। ज्ञानार्णव में साधनामय जीवन जीने वाले साधकों के लिए साधनामार्ग के साधक व बाधक कारणों का विवरण जिस पारदर्शिता एवं विशदता के साथ प्रस्तुत किये गये हैं, उनकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जैसी उसके रचनाकाल में रही होगी। उसका मुख्य कारण वर्तमान में मानव की आपाधापी और तनावपूर्ण जीवनशैली की विवशता है जिसके फलस्वरूप आध्यात्मिक सुख-शान्ति से दूर हो अपने परम लक्ष्य से ही भ्रष्ट होता दिखाई देता है। उसे सुखमय जीवन जीने का समीचीन मार्गदर्शन एवं लक्ष्य की ओर गतिशील करने के लिए ऐसे ही सर्व सम्मत ग्रन्थराज सहायक हो सकते हैं। आचार्य शुभचन्द्र ने ध्यान योग्य आसन के साथ ध्यान योग्य स्थान का भी वर्णन किया है। उन्होंने वर्तमान को दृष्टि में रखते हुए कायोत्सर्ग और पर्यंकासन को ध्यान के योग्य माना है। प्राणायाम के विषय में उनका मत है कि ध्यान की सिद्धि के लिए तथा अन्तःकरण की एकाग्रता के लिए प्राणायाम उपयोगी है। उनके अनुसार विवेकशील साधकों को प्राणायाम का पहले ही अभ्यास कर लेना चाहिए। उसके बिना मनोविजय कर पाना संभव नहीं है। उन्होंने प्राणायाम के पूरण, कुम्भक और रेचक ये तीन भेद किये हैं। साथ ही, प्रत्याहार और धारणा का एक साथ वर्णन किया है। - भारतीय योग परम्परा में वैदिक, जैन और बौद्ध इन तीनों प्रमुख परम्पराओं में ध्यान-योग एवं आचार विषयक विपुल साहित्य उपलब्ध है। शोध प्रबन्ध में लेखक द्वारा अनेक शास्त्र भंडारों व पुस्तकालयों से शोध सामग्री का संकलन तथा अनेक विद्वानों से सम्पर्क कर अनेक सुझावों व विचारों को परिवर्तन और परिवर्द्धन करने का उद्यम किया गया है। __ शोध ग्रन्थ में शुभचन्द्र से पूर्ववर्ती कुन्दकुन्दाचार्य जैसे जैनाचार्यों की रचनाओं को तुलनात्मक विवेचन का आधार बनाया है। शोध प्रबन्ध उपसंहार सहित आठ अध्यायों में विभक्त है। पहले अध्याय में योग परम्परा व उसके क्रमिक विकास आदि वैदिक ग्रन्थों में प्रतिपादित योग विषय की चर्चा की गई है। द्वितीय अध्याय में आचार्य शुभचन्द्र का परिचय वर्णित है। ऐसे महान् योगी, महाकवि साधक आचार्य शुभचन्द्र ने सर्वजनहिताय ज्ञानार्णव जैसे महाग्रन्थराज की रचना की। इस ग्रन्थ में महर्षि ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष से चार पुरुषार्थ बतलाये हैं। इनमें शुरु के तीन विनाशी हैं और एक मोक्ष पुरुषार्थ ही अविनाशी है। (Ni)
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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