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________________ महातपा महातेजा .................... ........................... / / 8 / / महत् तपो द्वादशविधं तपो यस्य सः / महान् बारह प्रकार का तप जिनके हो। वारह तपों में मुख्य ध्यान तप है। 6.अ. महामुनिर्महाध्यानी .................... ....................... / 19.|| ध्यानं धर्म्य-शक्लध्यान द्वयं विद्यते यस्य सः ध्यानी महांश्चासौ ध्यानी ... / महाध्यानपतिर्ध्यात-महाधर्मो महाव्रतः / ........ / / 7 / / महाध्यानस्य परमशुक्लध्यानस्य पतिः.... / महान् ध्यान परम शुक्ल ध्यान है उसके पति स्वामी अरहंतदेव ऋषभदेव को नमस्कार हो / महेन्द्र वन्द्योयोगीन्द्रो यतीन्दो ..................... / यहा भं. ऋषभ को योगीन्द्र कहा।। 13 / / महादानो महाज्ञानो महायोगो महागुणः / / 11 / / पंचम अध्याय - महान योगश्चेतोनिरोधो यस्य सः अर्थात् महान् योग वाले योगीश्वर वृषभ ___ सदायोगः सदाभोगः, ........................ पृ.65 टीका - सदा सर्वकालं योगो आसंसार-मलव्ध लाभ-लक्षणं परम शुक्लध्यानं यस्य स सदायोगः / . सर्व-योगीश्वरोऽचिन्त्यः .... .......................... योगात्माज्ञानसर्वगः / / 9 / / टीका-सर्वयोगीश्वरः सर्वयोगीनां गणधर-देवादीनां ईश्वरः स्वामी / / 62 / / योगात्मा - योगोऽलब्ध-लाभ आत्मा यस्येत्ति तथा चोक्तं अनेकार्थे - योगो विश्रब्ध-धातिनि अलब्धलाभे संगत्यां कार्मण-ध्यान-युक्तिषु वपुः स्थैर्य-प्रयोगे च संनाहे भेषजे घने विष्कम्मादावुपाये च।। 68 / / अर्थात् महान योग चित्त निरोध है, सदा आज तक जिसका लाभ नहीं हुआ ऐसा परम शुक्ल ध्यान जिनके है वे सदायोग हैं गणधरदेवों के भी ईश्वर तीर्थंकर वृषभेश्वर। आज तक जो आत्मा प्राप्त नहीं हुई उस रूप होकर रहना योगात्मा है अनेकार्थ कोष में योग शब्द के निम्न अर्थ हैं विश्रब्ध, धाता, अलब्धलाभ, संगति, कार्मण, ध्यान, युक्ति मुक्ति, शरीर, स्थैर्य, प्रयोग, संनाह, भेषज, घन विष्कंभ आदि और उपाय। वियोगो योगविद् विद्वान्, विधाता सुविधिः सुधीः / / 3 / / अध्यात्म-गम्यो गम्यात्मा योगविद् योगिवन्दितः ............ ||10|| योग-मलब्ध-लाभं वेत्तीति / योगो ध्यान-सामग्री योगो-विद्यते येषांते योगिनः तैर्वन्दितः / प.95 नमः परम-योगाय..... ................ / .................................... / / 20 / / (vii)
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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