SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य शुभचन्द्र ने संक्षेप से ध्यान के अशुभ, शुभ और शुद्ध ये तीन ही भेद किए हैं। इसके अलावा आर्त्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल इन चार भेदों को इनमें ही समाविष्ट जानना चाहिए। उल्लेखनीय है कि उन्होंने अपने ज्ञानार्णव में पिण्डस्थादिचार भेदों की प्ररूपणा संस्थानविचय धर्मध्यान के प्रसंग में विस्तृत रूप से की है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि ज्ञानार्णव के कर्ता को ये भेद संस्थानविचय धर्मध्यान के अन्तर्गत अभीष्ट रहे हैं। पर उन्होंने इसका कुछ स्पष्ट निर्देश न करते हुए इतना मात्र कहा है कि पिण्डस्थादि के भेद से ध्यान चार प्रकार का कहा गया है। ध्यानशतक में चतुर्थ (संस्थानविचय) धर्मध्यान का विषय बहुत व्यापक रूप में . उपलब्ध होता है। वहाँ इस ध्यान में द्रव्यों के लक्षण, संस्थान, आसन, भेद और प्रमाण के साथ उनकी उत्पाद, स्थिति व व्यय रूप पर्यायों को भी चिन्तनीय कहा गया है। साथ ही वहाँ पंचास्तिकाय स्वरूप लोक के विभागों और उपयोग स्वरूप जीव के संसार व उससे मुक्त होने के उपाय के भी विचार करने की प्रेरणा की गई है। इस प्रकार उक्त संस्थानविचय की व्यापकता को देखते हुए यदि ज्ञानार्णवकार को पूर्वोक्त पिण्डस्थ आदि भेदं उसकें अन्तर्गत अभीष्ट रहे हैं तो यह संगत ही माना जाएगा। इन सबके अतिरिक्त ध्यान के चौबीस भेदों का भी उल्लेख मिलता है, जिनमें बारह ध्यान क्रमश: ध्यान, शून्य, कला, ज्योति, बिन्दुनाद, तारा, लय, लव, मात्रा, पद और सिद्धि हैं तथा इन ध्यानों के साथ 'परम' पद लगाने से ध्यान के अन्य भेद बनते हैं। उपर्युक्त विवेचन से ज्ञात होता है कि जैनाचार्यों को ध्यान के चार भेद ही अभीष्ट रहे हैं। ध्यान के अन्य भेद ध्यान के इन्हीं भेदों में अन्तर्गर्भित हो जाते हैं। ध्यान की मनोवैज्ञानिकता - बहुत-से आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने ध्यान पर विचार किया है। मैक्डूगल ने कहा है कि - 'ज्ञानात्मक प्रक्रिया के दृष्टिकोण से ध्यान एक ज्ञानं अथवा प्रयास है।' उसके अनुसार अवधान या ध्यान को ज्ञान प्राप्त करने हेतु मन की एक चेष्टा कहा जाता सकता है। ध्यान की प्रतिक्रिया सक्रियता का एक चिह्न है। ध्यान का रुचि से घनिष्ठ सम्बन्ध निरूपित किया गया है, दोनों एक वस्तु को देखने के दो दृष्टिकोण हैं, क्योंकि मानसिक ढाँचों में एक स्वभाव का संगठन करना दोनों में ही आधारभूत है। रुचि गुप्त ध्यान है, जबकि ध्यान रुचि का क्रियात्मक पहलु। ___ आधुनिक मनोविज्ञान में ध्यान एक क्रिया ही माना गया है, क्योंकि ध्यान देने . का तात्पर्य होता है - अपनी क्रिया को केन्द्रित करना / यह तथ्य कि प्रत्येक व्यक्ति 1. ध्यानशतक, 52. 2. वही, 53-60. 4. Outline of Psychology. P. 272. 3. वही, 61. 78
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy