________________ गृहस्थ के सामान्य ध्यान हो सकता है किन्तु विशेष आध्यात्मिक ध्यान सर्वथा गृहस्थ के असंभाव्य है। इसीलिए एक महान आध्यात्मिक दर्शनवेत्ता आचार्य शुभचन्द्र ने ज्ञानार्णव जैसे महान् ध्यान के ग्रन्थ में ध्यान की पराकाष्ठा पर पहुँच कर मुक्ति के सोपान स्वरूप ध्यान को निरूपित कर गृहस्थ को सर्वथा ध्यान के अपात्र कहा है। यह ध्यान की श्रेणी पर आधारित तथ्य के अनुसार है। वास्तव में ध्यान वही है जो आत्मा की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि को सहज ही पा लेता है वह ध्यान ही आत्मध्यान है जिसकी साधना श्रमण के ही संभव है। बल्कि श्रमण भी यदि उस ध्यान से विचलित होता है तो वह भी उसे प्राप्त नहीं कर सकते नकुल, सहदेववत् युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन ने उस ध्यान से मुक्ति का वरण किया किन्तु नकुल व सहदेव किञ्चित् ध्यान से विचलित हुए और मुक्ति से वंचित हो गए तैंतीस सागर तक के लिए। अत: आचार्य शुभचन्द्र का चिन्तन उन अतल गहराइयों से परिपूर्ण है जो अध्यात्म की शलाका को स्पर्शित करता है। ध्येय विषयक विचार-विमर्श - ध्यान के सन्दर्भ में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि ध्यान किसका किया जाए ? दूसरे शब्दों में ध्येय या ध्यान का आलम्बन क्या हो ? सामान्य दृष्टि से विचार करने पर तो किसी भी वस्तु या विषय को ध्येय/ध्यान के आलम्बन के रूप में / स्वीकार किया जा सकता है, क्योंकि सभी वस्तुओं या विषयों में कम-अधिक रूप से ध्यानाकर्षण की क्षमता तो होती ही है। चाहे संसार के सभी विषय ध्यान के आलम्बन होने की पात्रता रखते हों, किन्तु उन सभी को ध्यान का आलम्बन नहीं बनाया जा सकता है। व्यक्ति के प्रयोजन के आधार पर ही उनमें से कोई एक विषय ही ध्यान का आलम्बन बनता है। अत: ध्यान के आलम्बन का निर्धारण करते समय यह विचार करना आवश्यक होता है कि ध्यान का उद्देश्य या प्रयोजन क्या है ? दूसरे शब्दों में ध्यान हम किसलिए करना चाहते हैं ? इसका निर्धारण सर्वप्रथम आवश्यक होता है। वैसे तो संसार के सभी विषय चित्त को केन्द्रित करने का सामर्थ्य रखते हैं, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि बिना किसी पूर्व विचार के उन्हें ध्यान का आलम्बन अथवा ध्येय बनाया जाए। किसी स्त्री का सुन्दर शरीर ध्यानाकर्षक या ध्यान का आलम्बन होने की योग्यता तो रखता है किन्तु जो साधक ध्यान के माध्यम से विक्षोभ या तनावमुक्त होना चाहता है, उसके लिए यह उचित नहीं होगा कि वह स्त्री के सुन्दर शरीर को अपने ध्यान का विषय बनाए। क्योंकि उसे ध्यान का विषय बनाने से उसके मन में उसके प्रति रागात्मकता उत्पन्न होगी, . वासना जागेगी और उसे पाने की आकांक्षा या भोग की आकांक्षा से चित्त में विक्षोभ पैदा