________________ 62 : डॉ० अशोक कुमार सिंह एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया बारहवें अधिकार में सूर्यायन, चन्द्रायन, का निरूपण, तेरहवें अधिकार में सूर्य और चन्द्र की आवृत्ति का निरूपण, चौदहवें अधिकार में मुहूर्त और प्रतिमुहूर्त में जाने का परिमाण तथ पन्द्रहवें अधिकार में ऋतु परिमाण का विस्तार से विवेचन है / 13 सोलहवें अधिकार में विषुवकाल, सत्रहवें अधिकार में चन्द्र और सूर्य के परस्पर व्यतिपात का निरूपण, अठारहवें अधिकार में सूर्य के ताप का निरुपण तथा उन्नीसवें अधिकार में दिन में वृद्धि और हानि का निरूपण हुआ है / 14 अमावस्या करण और पूर्णिमा करण आदि का विस्तार से निरूपण बीसवें एवं इक्कीसवें अधिकार में हुआ है / 15 बाईसवें आधिकार में प्रणष्ट पर्व, जन्म और नक्षत्र आदि का विवेचन है तथा अन्तिम तेईसवें अधिकार में पौरुषी परिसाण का निरूपण है / 16 अन्त में शिष्य का विनयवचन और उपसंहार के रूप में ग्रन्धकार श्रीपादलिप्ताचार्य के नामोल्लेख पूर्वक ग्रन्थ को पूर्ण किया गया है / 17 (11) तित्थोगाली तित्थोगाली प्रकीर्णक का उल्लेख सर्वप्रथम व्यवहार भाष्य में प्राप्त होता है। इस ग्रन्थ की किसी प्रति में१२३३ और किसी में 1261 गाथाएँ उपलब्ध होती हैं / मुनि पुण्यविजयजी द्वारा संपादित पइण्णयसुत्ताइं में प्रस्तुत ग्रन्थ की.१२६१ गाधाएँ उपलब्ध होती हैं। इस ग्रन्थ में विशेष रूप में वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें तीर्थंकर महावीर तक के विवरण के साथ ही भरत, ऐरावत आदि दस क्षेत्रों में एक साथ उत्पन्न होने वाले दस तीर्थंकरों एवं पाँच विजय क्षेत्र की अपेक्षा से बत्तीस तीर्थंकरों का विवेचन किया गया है। ग्रन्थ के अज्ञात रचनाकार ने प्रारम्भिक मंगल गाथाओं में सर्वप्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को तत्पश्चात् अजितनाथ आदि मध्यवर्ती बाईस तीर्थंकरों को और अन्त में तीर्थंकर महावीर को वन्दन किया है / तत्पश्चात् उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल और उसके छः-छः आरों का विस्तृत निरूपण करते हुए सर्वप्रथम सुषमा-सुषमा काल के विषय में कहा गया है कि इस काल में भरत और ऐरावत क्षेत्रों में दस कुरुओं के समान अकर्मभूमि होती है / यहां की भूमि मणि-कणक आदि से विभूषित होती हैं। यहां बाबड़िया, पुष्करिणियां और दीर्घिकाएं आदि सुशोभित होती हैं / यहां ग्राम, नगर आदि सुरालयों के समान होते हैं / इस काल में असि, मसि, कृषि तथा राजधर्म आदि का कोई व्यवहार नहीं होता है / यहां के निवासी सदा अनुपम सुख का अनुभव करते हैं। ये निर्भय, गंभीर, दयालु तथा सरल स्वभाव वाले एवं अपरिमित बल से सम्पत्र होते हैं / यहां के निवासी पृथ्वी से प्राप्त पुष्प तथा फलों का आहार करते हैं /