________________ समाधिमरणेतर प्रकीर्णकों की विषयवस्तु : 61 वृत्तिकार बताया है इससे मुनि पुण्यविजयजी ने यह निष्कर्ष निकाला है कि यह पादलिप्ताचार्य की रचना है। इसमें ज्योतिष सम्बन्धी 23 अधिकार हैं / प्रारम्भ में वर्धमान स्वामी को नमस्कार कर ज्योतिषकण्डक कहने की सूचना और प्रारम्भिक वक्तव्य है / इसके पश्चात 23 अधिकारों के नाम निर्देश किये गये हैं३. - 1. कालप्रमाण 2. मान अधिकार 3. अधिकमास निष्पत्ति 4. अवमरात्र ५-६.पर्व-तिथि समाप्ति 7. नक्षत्र परिमाण 8. चन्द्र सूर्य परिमाण 9. नक्षत्र, चन्द्र, सूर्य गति 10. नक्षत्रयोग 11. मण्डलविभाग 12. अयन 13. आवृत्ति 14. मण्डल मुहूर्तगति 15. ऋतुपरिमाण 16. विषुवत्प्राभृत 17. व्यतिपात प्राभृत 18. ताप क्षेत्र 19. दिवस-वृद्धि-हानि 20. अमावस्या 21. पूर्णिमा प्राभृत 22. प्रणष्टपर्व . . 23. पौरुषी परिमाण उपरोक्त 23 अधिकारों की चर्चा करते हुए सर्वप्रथम काल को अनागत, अतीत और वर्तमान तथा संख्यात, असंख्यात और अनन्त निर्दिष्ट किया गया है / इसके पश्चात काल के विभित्र प्रमाण, समय, उच्छवास, निःश्वास. प्राण, स्तोक, लव, नलिका का विवरण है / इसमें नलिका अर्थात् घटिका के निर्माण की विधि भी बतलाई गयी है। पहले मान के धरिम और मेय ये दो भेद किये गये हैं / फिर उनके भेद-प्रभेदों का विस्तार से निरूपण है। तीसरे अधिकार में अधिक मास निष्पत्ति का विवेचन है। इसके पश्चात चौथे अवमरात्र अधिकार का निरूपण करने से पूर्व पांचवें-छठे पर्व-तिथि समाप्ति का विवेचन है। इसमें तिथि की हानि और वृद्धि का निरूपण है / चौथेअवमरात्र अधिकार में मास का बढ़ना और घटना एवं अवमरात्रांश आदि का विवेचन है। सातवें नक्षत्र परिमाण प्राभृत में नक्षत्रों के संस्थान, तारा परिमाण, नाम, अधिपति देव, पांच प्रकार के ज्योतिष्कों के विभाग, चन्द्र और सूर्यों की संख्या, चन्द्रमा के परिवार आदि का निरूपण है / आठवें अधिकार में चन्द्र और सूर्य मण्डल का तथा नवें अधिकार में नक्षत्र, चन्द्र और सूर्य के गतिमण्डल का विवेचन है / 1deg दसवें अधिकार में नक्षत्र, चन्द्र और सूर्य के योगकाल आदि का निरूपण है।११ ग्यारहवें अधिकार में जम्बूद्वीप, भरत आदि क्षेत्र, वर्षधर पर्वत, भरत आदि विष्कम्भ, मेरु विष्कम्भ परिमाण करण, प्रदेश वृद्धिकरण, मेरु अवधि सापेक्ष, चन्द्र-सूर्य गति, चन्द्रसूर्य मण्डल आदि का विस्तार से निरूपण है / 12