________________ प्रकीर्णक-साहित्य में समाधिमरण की अवधारणा : 101 5. क्षमायाचना ' समाधिमरण का यह भी एक महत्त्वपूर्ण सोपान है / साधु हो तो वह गुरु, गण एवं संघ के साधुओं से क्षमायाचना कर समस्त जीवों से क्षमायाचना करें। श्रावक हो तो वह भी अपने निकटतम जीवों से क्षमायाचना करने के पश्चात् सब जीवों से क्षमाचायना करें। आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, साधर्मिक, कुल, गण आदि सबसे क्षमायाचना करने का विधान आयरिए उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुल गणे य / जे मे केइ कसाया सव्वे तिविहेणं खामेमि / / 62 वह स्वयं मात्र दूसरों से क्षमायाचना ही नहीं करता, अपितु दूसरों को क्षमादान भी करता है / वह सबसे वैर-विरोध त्यागकर मित्रता का भाव रखता है क्योंकि वह सबसे क्षमा याचना कर अपने हृदय को निर्मल बना लेता है खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे / मित्ती मे सव्व भूएसु, वेरं मज्झं न केणइ / / 63 महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक में इस गाथा की दूसरी पंक्ति इस प्रकार है-आसवे वोसिरित्ताणं समाहिं पडिसंधए' अर्थात् मैं आसवों को त्यागकर समाधि का प्रतिसंधान करता हूँ। .. 6. आहार, शरीर एवं उपधि का त्याग वैसे तो संलेखना के बाह्य भेद में शरीर को कृश करने का उल्लेख आ गया है, किन्तु - मरण संलेखना पूर्वक हो या बिना संलेखना के, मरणकाल उपस्थित होने पर चारों प्रकार के आहार का त्याग कर दिया जाता है / भक्तपरिज्ञामरण में अवश्य प्रारम्भ में त्रिविध आहार का त्याग किया जाता है; किन्तु बाद में चारों आहारों का त्याग कर दिया जाता है / जब देह छूटने का समय एकदम नजदीक है, तब आहार करने से क्या लाभ ? आहार के लिए कहा गया है कि आहार के कारण से मत्स्य सातवीं नरक में जाते हैं, इसलिए सचित्त आहार की तो साधक मन.से भी कामना न करें। आहार के सम्बन्ध में एक बात ध्यातव्य है कि समाधिमरण से मरने वाले साधक के (ओजाहार एवं) रोमाहार तो चाल ही रहता है, केवल कवलाहार का ही त्याग किया जाता है। (ओजाहार तो सम्पूर्ण शरीर के द्वारा ग्रहण किया जाता है तथा) रोमाहार शरीर के रोमों के माध्यम से ग्रहण किया जाता है / कवलाहार के रूप में जिस आहार का त्याग किया जाता है उसमें अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों का ग्रहण हो जाता है / . शरीर के साथ मित्रता का अनुभव करना शरीर का त्याग है / शरीर के साथ ममत्व छोड़ने के पश्चात ही यह संभव है कि शरीर से आत्मा को भित्र अनुभव किया जा सके। अनं इमं सरीरं अत्रो जीव ति' का स्मरण एवं अनुभव सदैव रहना चाहिए / 64