________________ जाना चाहिये। मन्दिर-निर्माण के दौरान काम करते एक मजदूर से पूछा गया कि वह क्या कर रहा है ? उत्तर मिला कि वह पत्थर तोड़ रहा है। इसी प्रश्न के उत्तर में दूसरे ने कहा कि वह अपने व अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए काम कर रहा है। तीसरे का उत्तर था कि वह भगवान का घर बना रहा है। कार्य के साथ कार्य की भावना और लगन उसके महत्व को बहुगुणित कर देती है। श्रम और दास-प्रथा उस समय विविध प्रकार की सेवाएँ करने वाले व्यक्ति राजा और अन्य सम्पन्न घरानों में नौकरी किया करते थे। यह परम्परा आज भी विद्यमान है। जैन * * सिद्धान्तों और संस्कृति का यह सुप्रभाव रहा कि नौकरों और दास-दासियों पर होने वाले अत्याचारों के विरुद्ध माहौल बना। वर्द्धमान के जन्म की सिद्धार्थ को सूचना देने वाली दासी प्रियंवदा को सिद्धार्थ ने दास-कर्म से मुक्त कर दिया था। भ. महावीर के प्रमुख भक्त मगध सम्राट् श्रेणिक ने भी उनके पुत्र जन्म का संवाद देने वाली दासी को दासत्व से मुक्त कर दिया था। व्यवहार भाष्य के अनुसार एक कुटुम्बी ने उसकी दासी की सेवाओं से प्रसन्न होकर उसका मस्तक धोकर उसे दासता से मुक्त कर दिया था।" एक कुटुम्बी उसके घर में दास को पीट रहा था। कुमारावस्था में वर्धमान उस घर के बाहर से जा रहे थे। मानव द्वारा मानव पर हुए इस अत्याचार से वर्धमान का दिल दहल उठा। उनका वैराग्य प्रबलतम हो गया। उन्होंने समाज से इन अत्याचारों को मिटाने का संकल्प किया। चन्दनबाला का उद्धार दास-प्रथा और नारी जाति के साथ हो रहे भेदभाव के विरुद्ध उनकी आध्यात्मिक क्रान्ति का बड़ा उदाहरण है। भ. महावीर के उपदेशों में ये स्वर आज भी गूंजते हैं कि मानव मानव पर कोई अत्याचार नहीं करें, मानव किसी प्राणी पर भी कोई अत्याचार नहीं करें। _जैन धर्म और दर्शन आत्मवाद पर खड़ा है। वहाँ मानववाद, मानवता और मानवीयता के नियमों का अनुपालन सहज ही उत्कृष्ट रूप में हुआ है। पूर्व तेबीस तीर्थंकरों की भाँति अन्तिम तीर्थंकर महावीर ने भी मानव-एकता की अलख जगाई। उनके चतुर्विध संघ में सभी वर्गों, वर्गों और जातियों के व्यक्तियों को आत्म-साधना के लिए समान अवसर प्राप्त है। उस समय आज की भाँति उद्योग नहीं थे। इसलिए कोई औद्योगिक श्रम कानून और श्रमिक संगठन जैसी बात भी नहीं थी। परन्तु, भगवान महावीर के प्रभाव से लोग मानवाधिकार और मानवीय मूल्यों का सम्मान करने लगे थे। (56)