________________ सन्दर्भ 1. जैन, जगदीशचन्द्र (डॉ.) प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ.-163 2. कापड़िया, एच.आर. (प्रो.) दि कैनानिकल लिटरेचर ऑफ दि जैनाज़ (1941) पृ. 44-45 3. मेहता, मोहनलाल (डॉ.) जैन दर्शन, प.-89 (वर्तमान में स्थानकवासी और तेरापंथी परम्पराएँ इन्हें मूल सूत्र मानती हैं) 4. . शास्त्री, नेमिचन्द्र (डॉ.) प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृष्ठ-192 5. मुनि कन्हैयालाल 'कमल', उपाध्याय, जैनागम निर्देशिका, पृ.-757 6. देखें, श्री मलयागिरीया नन्दीवत्ति पत्र 65, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ. 188, प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पष्ठ-199 आदि। 7. सिंघवी, सुखलालजी (पं.), तत्त्वार्थ सूत्र पृ-8 8. जैन, जगदीशचन्द्र (डॉ.) प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ.-190 9. कुन्दकुन्द, आचार्य, प्रवचनसार 3/16 10. कापड़िया, एच.आर. (प्रो.) दि कैनानिकल लिटरेचर ऑफ दि जैनाज़ पृ. 11. मालवणिया, दलसुख (पं.) जैन साहित्य का बहद् इतिहास भाग एक, प्रस्तावना पृ.-54, प्रकाशक-पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान (जैनाश्रम) 12. कापड़िया, एच.आर. (प्रो.) दि कैनानिकल लिटरेचर ऑफ दि जैनाज़ पृ. 13. देवेन्द्र मुनि (आचार्य), आगम साहित्य : मनन और मीमांसा पृ.-347 14. जैन, जगदीशचन्द्र (डॉ.) प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ.-157 15. देवेन्द्र मुनि (आचार्य), आगम साहित्य : मनन और मीमांसा पृ.-357-358 16. मुनि कन्हैयालाल 'कमल', उपाध्याय, जैनागम निर्देशिका, पृ.-877 17. नगराज, मुनि, आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, प.-486 एवं डॉ. (22)