________________ समय संस्कृत के उत्कर्ष का था, इसलिए आचार्यों ने टीकाओं में संस्कृत को अपनाया। नियुक्तियों में आगमिक शब्दों की व्याख्या, भाष्यों में विस्तृत विवेचन तथा चूर्णियों में निगूढ भावों को लोक कथाओं के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है जबकि टीका साहित्य में आगमों का दार्शनिक दृष्टि से विवेचन है। टीकाकारों में जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण, आचार्य हरिभद्र, आचार्य अभयदेव, आचार्य शीलांक, कोट्याचार्य, आचार्य गन्धहस्ती, मलयगिरी, मलधारी हेमचन्द्र, नेमीचन्द्र आदि प्रमुख हैं। आधुनिक समय में भी पर्याप्त टीका-लेखन का कार्य हुआ है तथा आधुनिक भाषाओं में उल्लेखनीय अनुवाद कार्य हुए हैं। (21)