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________________ परिच्छेद छः संयम के अर्थशास्त्र के आयाम आर्थिक संयम गृहस्थाचार के अन्तर्गत और अन्यत्र हमने अहिंसा और संयम के विभिन्न आयामों की चर्चा की। अहिंसा और संयम सहवर्ती गुण हैं। इन्हें अर्थशास्त्र के नियामक तत्व कहा जा सकता है। भगवान महावीर कहते हैं व्यक्ति वध और बन्धन द्वारा दूसरों का दमन करता है। इससे तो अच्छा है, वह संयम और तप के द्वारा स्वयं का ही दमन करें।' संयम का अर्थशास्त्र मूलतः व्यष्टिगत नियमों और हितों की व्याख्या करता है, जिनके विवेकसम्मत अनुपालन से समष्टिगत अर्थशास्त्र के उद्देश्यों को आधारभूत तरीकों से पूरा किया जा सकता है। संयम अपव्यय के सारे द्वारों को रोक देता है। वह जीवन के समस्त व्यवहारों में विवेक और अनुशासन पैदा करता है। एक व्यक्ति की मामूली आय है, परन्तु उसकी जीवन शैली संयमित है। वह पैसे का अपव्यय नहीं करता है। मौज-शौक और व्यसनों से दूर रहता है। धीरे-धीरे वह सम्पन्नता की ओर बढ़ता चला जाता है। वह आर्थिक दृष्टि से तो सम्पन्न बनता ही है, वैचारिक व नैतिक दृष्टि से भी वह सम्पन्न बनता है। जबकि एक अन्य व्यक्ति जिसकी आय काफी ठीक है। परन्तु वह व्यसनी और विलासी है। वह अर्जन करते हुए भी विपन्न बना रहता है। उसकी निर्धनता उसे अन्य कई सुख और मान-सम्मान से वंचित कर देती है। जैन धर्मानुयायियों की सम्पन्नता की एक वजह उनकी संयमित, अनुशासित और व्यसन-मुक्त जीवन शैली का होना है। ___ ढाई हजार साल पहले भगवान महावीर ने संयम का एक प्रायोगिक अभियान शुरू किया था। जिस समय आबादी आज जितनी नहीं थी, उस समय पाँच लाख व्यक्तियों का समाज बनाया था। पाँच लाख लोग उस समय की दृष्टि से कम नहीं होते हैं। वे लोग संयम, सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह आदि नियमों का निष्ठापूर्वक पालन करते थे। जन सामान्य से लेकर लिच्छवी गणतन्त्र के अध्यक्ष महाराजा चेटक और प्रख्यात गाथापति आनन्द जैसे वर्चस्वी व्यक्ति भी उस व्रती समाज से जुड़े हुए थे। (294)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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