________________ 1. चारित्र-धर्म : इस धर्म के अन्तर्गत मुख्यतः आत्म-साधना को लिया जाता है। परन्तु आत्म-विकास के लिए जिन नियमों का पालन करना होता है, वे नियम राष्ट्र के नैतिक, सामाजिक व आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका निभाते 10. अस्तिकाय-धर्म : जैन तत्व-ज्ञान को समझना समझाना अस्तिकाय-धर्म है। यह समझ हमारे दृष्टिकोण को वैज्ञानिक तथा तर्कसंगत बनाती है। हमारे मनमस्तिष्क के द्वार नित नये ज्ञान-विज्ञान को जानने के लिए खुले होने चाहिये। विराट् दृष्टिकोण सम्भावनाओं के द्वार खुले रखता है। ज्ञान के उपयोग व प्रयोग में विवेक का विस्मरण नहीं होना चाहिये। जिस आचार-विचार से सामाजिकता और राष्ट्रीयता जुड़ी होती है, उसी आचार-विचार से आर्थिक-प्रगति जुड़ी होती है। इन दस धर्मों के अन्तर्गत धर्म शब्द कर्त्तव्य का बोधक है। हर व्यक्ति समाज का सदस्य और देश का नागरिक होता है। उसे अपनी क्षमता, सामर्थ्य, योग्यता, जवाबदेही, समय आदि को ध्यान में रखते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिये। (223)