SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिटरेचर' दिशा निर्देश करती हैं। इस शोध कार्य का स्वरूप, दृष्टिकोण और उद्देश्य पूर्व कार्यों से सर्वथा भिन्न है। आधुनिक आर्थिक प्रणालियों के व्यापक परिप्रेक्ष्य में आगमिक आर्थिक व्यवस्था, आचार व्यवस्था, सिद्धान्तों और दार्शनिक मान्यताओं के व्यावहारिक पक्ष को इसमें सुसंगत ढंग से प्रस्तुत किया गया है। आभार जैनविद्या के प्रति मेरे मन में आरम्भ से ही सहज श्रद्धा और जिज्ञासा रही है। इस वजह से जैनविद्या के मनीषियों के प्रति भी सदैव आदर का भाव रहा है। इन मनीषियों में परमादरणीय प्रो. प्रेम सुमन जैन का नाम मेरे हृदय पटल पर करीब डेढ दशक से अंकित है। पेशे के रूप में लेखांकन और कर-परामर्श से मेरा जुड़ाव होने से अर्थशास्त्र और आगम से सम्बन्धित विषय मुझे उचित प्रतीत हो रहा था। मेरे विचारों को जानकर डॉक्टर साहब (प्रेम सुमन जी) ने मेरे शोध-प्रबन्ध का विषय सुझाया। उनके अनुभवपूर्ण और विद्वत्तापूर्ण सुझावों से मेरे शोध को नई दिशाएँ मिलीं। गुणवत्ता और मौलिकता उन्हें प्रिय हैं। ऐसे दीर्घ अनुभवी विद्वान के निर्देशन में शोध-कार्य करने का मुझे हर्ष और गर्व है। मेरा पैतृक गाँव बम्बोरा है, जो उदयपुर से पूर्व दिशा में पचास किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पेशे की वजह से मैं उदयपुर में रह रहा हूँ। साथ में जीवनसंगिनी सीमा और चि. प्रणत हैं। हमारा गाँव जाना होता रहता है और परिजनों का यहाँ आना होता रहता है। पिता श्री कन्हैया लाल जी धींग हमसे मिलने और हमें संभालने के लिए शहर आते रहते थे। सितम्बर-2004 की आखिरी तारीख को वे यहाँ आये तब उन्होंने मुझे शोध-कार्य शीघ्र पूरा करने के लिए कहा था। 9 अक्टूबर 2004, शनिवार (आश्विन कृष्ण 10, वि.सं. 2061) को पूर्वाह्न करीब पौने ग्यारह बजे दिल का दौरा पड़ने से उनका अचानक अकल्पनीय अवसान हो गया। मेरे .लिए ही नहीं, पूरे परिवार के लिए यह असह्य दुःख की घड़ी थी। इस शोध-कार्य की सम्पूर्ति पर मैं पूज्य पिताजी की पुनीत स्मृति और प्रेरणा को नमन करता हूँ। जिस गृहस्थाचार की अर्थशास्त्रीय चर्चा प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में की गई है, उसके बोल बचपन से ही मैं मेरी माताजी उमराव देवी के मुँह से उनकी पाक्षिक प्रतिक्रमण-साधना के दौरान सुनता रहा हूँ। उनका जीवन अणुव्रतों से अनुप्राणित है। इसलिए इस शोध-कार्य में उनका जीवन ही मेरे लिए प्रेरणा-स्रोत बना है। (xix)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy