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________________ मार्मिक घटनाओं की चर्चा है। एक वणिक ने ईंटों से पक्का घर बनाया और घर बन जाने पर उसकी मृत्यु हो गई। कम कमाई होने से उसके पुत्र गृहकर नहीं चुका . पा रहे थे। उसके पुत्रों ने वह मकान श्रमण-श्रमणियों को ठहरने के लिए समर्पित कर दिया तथा वे स्वयं पास में ही झोंपड़ी बनाकर रहने लगे। ऐसा करके वे गृहकर के दायित्व से मुक्त हुए थे। ग्रन्थों में एक रुवग प्रतिगृह गृहकर बताया गया है, परन्तु वह एक रुवग कर मासिक है या वार्षिक, यह उल्लेख नहीं है। अनुमानत: यह मासिक ही जान पड़ता है। शूर्पारक नगर में गृहकर (नैगमकर) अनिवार्यतः लाग किये जाने पर वहाँ के 500 वणिक परिवारों ने विरोध किया। विरोध पर भी करारोपण समाप्त नहीं किया तो उन परिवारों ने आत्मदाह कर लिया। इससे कर चुकाने की अनिवार्यता और कर वसूली में सख्ती सिद्ध होती है। अहिंसक आर्थिक प्रणाली में ऐसी कठोरता को स्वीकृति देना संभव नहीं है। वाणिज्य कर जिन वस्तुओं में व्यापार किया जाता उन पर कर लगाया जाता था। इसलिए जब चम्पानगरी के पोतवणिक मिथिला में व्यापार के लिए गये तो उन्होंने मिथिला नरेश को विभिन्न प्रकार के मूल्यवान उपहारों से प्रसन्न कर लिया और बिना कर के व्यापार की अनुमति प्राप्त कर ली। राज्य के बाहर से माल आता तो उसे सुंकठाणे (जाँच-चौकी/कस्टम हाउस) पर जाँचा जाता तथा उस पर कर लगाया जाता। कर लगाने वाले अधिकारी को सुकिया कहा जाता था। व्यापारिक मार्गों पर कर लगाने वाली ऐसी शुल्कशालाएँ हुआ करती थीं। कर की दर वस्तु की कीमत, मार्ग-व्यय तथा अन्य खचों को ध्यान में रखते हुए तय थी।" इनके अलावा व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तथा उन्हें दुरुस्त रखने के लिए मार्ग-कर भी लिया जाता था। आयात पर करारोपण अधिक होने से यह अनुमान लगाया जाता है कि राज्य निर्यात को प्रोत्साहित करता था। बेहतर भुगतान सन्तुलन और विदेशी मुद्रा भण्डार की वृद्धि के लिए निर्यात को प्रोत्साहन दिया जाता है। इससे राज्य की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनती है। अन्य स्रोतों से आय राजकोष को भरने के लिए आय के अन्य स्रोत भी थे। उनमें हैं - उपहार व भेंट, गुप्त सम्पत्ति, निःस्वामिक धन, पराजित राजाओं से प्राप्त धन, अर्थदण्ड आदि। इनमें कुछ स्रोत नकारात्मक है, कुछ सकारात्मक और कुछ स्वाभाविक है। (80)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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