________________ करता था तथा लगान में कमी कर देता था। इससे स्पष्ट है कि लगान राज्य की आय का प्रमुख माध्यम था। साथ ही इससे राज्य की ओर से कृषि को अनेक रूपों में संरक्षण मिलता था। करारोपण राज्य की आय का मुख्य स्रोत करारोपण ही होता है। आगम कालीन राज्यों के पास प्रभूत सम्पत्ति होती थी। उत्सव और खुशी के अवसरों पर राज्य की ओर से प्रजा को करों में छूट प्रदान की जाती थी। व्याख्याप्रज्ञप्ति में 'उस्सुक्कम्' (बिना शुल्क) और 'उक्करम' (कर-मुक्त) शब्द राज्य की कर-व्यवस्था का. संकेत करते हैं। स्पष्ट है कि राज्य के द्वारा करारोपण के नियम स्थापित थे। कृषि और व्यवसाय अच्छे थे इसलिए वस्तुओं या मुद्राओं के रूप में कर-संग्रह भी अच्छा होता था। विपाक-सूत्र में राजा को सुझाव दिया गया है कि वह प्रजा को कष्ट देकर कर-संग्रह नहीं करें। ऐसा करने वाले राजा को 'पापी' कहा गया है। आचार्य जिनसेन आदर्श करारोपण के लिए उदाहरण देते है कि जिस प्रकार दूध देने वाली गाय को बिना पीड़ा पहुँचाये दूध प्राप्त किया जाता है, उसी प्रकार प्रजा को भी बिना कष्ट दिये कर प्राप्त करना चाहिये। सोमदेवसूरि ने भी कहा है कि यदि राजा प्रजा को कष्ट देकर कर प्राप्त करता है तो उसका राज्य के व्यवसाय पर भी विपरीत असर होगा तथा प्रजा छल-कपट का सहारा लेगी। वृक्ष का मूलोच्छेदन करने वाला एक बार ही फल प्राप्त कर सकता है। करापवंचन की रोकथाम के लिए राज्य को अतिकर से बचना चाहिये। .. . 18 प्रकार के कर आगम ग्रन्थों में करारोपण के सन्दर्भ प्राप्त होते हैं। जबकि उनके व्याख्या ग्रन्थों में करारोपण की व्यवस्थित प्रणालियों का पता चलता है। इन करों में प्रत्यक्ष कर - आयकर, धनकर आदि की सुस्पष्ट सूचनाओं का अभाव है जबकि गृहकर के स्पष्ट उल्लेख हैं। मुख्य रूप से अप्रत्यक्ष कर लगाये जाते थे। उसमें राजस्व प्राप्ति के रूप में सेवाकर सुस्थापित नहीं था। उपज, उत्पादन, वाणिज्यिक गतिविधियों और बिक्री पर मुख्य रूप से कर लगाया जाता था। जिनकी तुलना वर्तमान के उत्पाद शुल्क और विक्रय-कर से की जा सकती हैं। डॉ. जगदीश चन्द्र जैन ने जैन-ग्रन्थों में वर्णित अठारह प्रकार के करों का उल्लेख किया है :1. गोकर (गाय की बिक्री पर लगने वाला कर) 2. बलिवर्दकर (बैल की बिक्री पर लगने वाला कर) (78)