________________ 86 प्राकृत पाठ-चयनिका मह जीविएण वि चिरं सुयणो च्चिय जियउ लोयम्मि।। अहवा। गुण-सायरम्मि सुयणे गुणाण अंतं ण चेव पेच्छामि। रयणाइँ रयण-दीवे उच्चेउं को जणो तरइ।। एत्थं च उण ण कोइ दुज्जणो, उप्पेक्खह सज्जणं च केवलयं। तहे णिसुणेतु भडरय त्ति। 13. अत्थि दढ-मेरु-णाहिं कुल-सेलारं। समुद्द-मिल्लं। जंबुद्दीवं दीवं लोए चक्कं व णिक्खित्तं।। अवि य। तस्सेय दाहिणद्धे बहुए कुल-पव्वए विलंघेउं। वेयड्डेण विरिक्कं सासय-वासं भरहवासं।। वेयड्ड-दाहिणेणं गंगा-सिंधूय मज्झयारम्मि। अत्थि बहु-मज्झ देसे मज्झिम-देसो त्ति सुपसिद्धो।। वेयड्ड-दाहिणेणं गंगा-सिंधूय मज्झयारम्मि। अस्थि बहु-मज्झ-देसे मज्झिम-देसो त्ति सुपसिद्धो।। सो य देसो बहु-धण-धण्ण-समिद्धि-गव्विय-पामर-जणो, पामर-जण-बद्धावाणयगीय-मणहरो, मणहर-गीय-रव-रसुक्कुंठिय-सिहिउलो, सिहिउल-केंया-रवाबद्ध -हलबोलुब्भिज्जमाण-कंदल-णिहाओ, कंदल-णिहाय-गुंजंत-भमिर-भमरउलो, भमरउल-भमिर-झंकार-राव-वित्तत्थ- हरिणउलो, हरिणउल-पलायंत-पिक्क-कलमकणिस-कय-तार-रवो, तार-रव-संकिउड्डीण-कीर-पंखा-भिघाय-दलमाण-तामरसो तामरस-के सरुच्छलिय-बहल-तिंगिच्छि-पिंजरिज्जंत-कलम-गोवियणो-गोवियण-महुरगीय-रव-रसा-खिप्पमाण-पहिययणो, पहिययण-लडह-परिहास-हारि-हसिज्जमाण-तरुणियणो, तरुणियणाबद्ध-रास-मंडली-ताल-वस-चलिर-लय-कलयलारावुद्दीविज्जंत-मयणमणोहरो त्ति। अवि य। बहु-जाइ-समाइण्णो महुरो अत्थावगाढ-जइ-जुत्तो। देसाण मज्झदेसो कहाणुबंधो व्व सुकइ-कओ।।