________________ कुमारपालचरितम् प्रथमः सर्गः 1. अह पाइआहिँ भासाहिँ संसयं बहुलम् आरिसं तं तं / अवहरमाणं सिरि-वद्धमाण-सामि नमसामो // 1 // 2. अत्थि अणहिल्ल-नगरं अन्ता-वेईसमाइ-निव-निचिअं। सत्तावीसइ-मुत्तिअ-भूसिअ-जुवइ-जण-पइ-हरयं // 2 // 3. तिअस-वई-हर-वहु-मुह-आदरिसीहूय-फलिह-सिल-सिहरो / जस्सि पुहइ-वहू-मुह-अवयंसो सहइ पायारो // 3 // 4. निव-सह-मुहावयंसा बिइया गुरुणो अबीय-गुण-निवहा / निवसन्ति अणेग-बुहा जस्सि पुहवीस-सलहिज्जे // 4 // 5. न हु अत्थि न वि अ हूअं इह लोए-अइसएण जस्स समं / सुउरिस-ठाणमअसूरिस-रहिअं सालाहण-पुरंपि // 5 // 6. जस्सि नमन्त-सीसो तियसीसो वि हु तवं तवन्ताण / तेलुक्क-सज्जणाणं थुणइ स-भिक्खूण सद्धाए // 6 // 7. जत्थोन्नय-थण-नीसह-वहु-दसण-निस्सहं नरा जन्ति / दुसहाउ दुस्सहेणं मयणेण हयन्तरप्पाणो // 7 //