________________ 0000000 222222222222222238232322223333333333333333333 / नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) / (हरिभद्रीय वृत्तिः) यत्तु तदर्थवियुक्तं तदभिप्रायेण यच्च तत्करणि। लेप्यादिकर्म तत् स्थापनेति क्रियतेऽल्पकालं च // अस्यायमर्थः- 'यद्' वस्तु 'तदर्थवियुक्तम्' भावेन्द्राद्यर्थरहितम्, तस्मिन्नभि-: प्रायस्तदभिप्रायः, अभिप्रायो बुद्धिः, तदबुद्धयेत्यर्थः, करणिराकृतिः, यच्वेन्द्राधाकृति लेप्यादिकर्म , क्रियते'।चशब्दात्तदाकृतिशून्यं चाक्षनिक्षेपादि, 'तत्स्थापनेति' ।तचेत्वरमल्पकालमितिपर्यायौ, << चशब्दाद्यावद्र्व्यभावि च।स्थाप्यत इति स्थापना, स्थापना चासौ मङ्गलं चेति समासः।तत्र * स्वस्तिकादि स्थापनामङ्गलमिति। (वृत्ति-हिन्दी-) जो अपने (वाच्य) अर्थ से शून्य होती है और उस (वाच्य वस्तु) के ही a अभिप्राय से उसके आकार से युक्त लेप्य (चित्रकर्म) आदि कार्य द्वारा, अल्पकाल के लिए जो वस्तु प्रतिष्ठित की जाती है, वह 'स्थापना' (निक्षेप) है। a इसका अर्थ (भाव) यह है कि जो वस्तु अपने वाच्य अर्थ से शून्य हो, जैसे : . उदाहरणस्वरूप, इन्द्र (नाम से स्थापित वस्तु) भाव इन्द्र (वास्तविक इन्द्र) आदि अर्थ से , a रहित हो, किन्तु उसके यानीं 'इन्द्र' के अभिप्राय से, अर्थात् उसे उसी (इन्द्र) जैसा मान " a कर, करणि अर्थात् इन्द्र आदि आकृति वाला जो लेप्य आदि कर्म किया जाता है, 'च' शब्द से " & उसकी आकृति से रहित भी हो, जैसे- पासे, मोहरे, गोटियों आदि के रूप में स्थापित , करना, वह ‘स्थापना' कही जाती है। वह स्थापना अल्पकालिक होती है। अल्पकालिक व , व इत्वर ये दोनों पर्याय हैं। 'च' शब्द से जब तक वह द्रव्य विद्यमान होता है तब तक के लिए, ca अर्थात् हमेशा के लिए भी स्थापना होती है। चूंकि वह स्थापित की जाती है, इसलिए वह " व स्थापना कही जाती है। स्थापना ही मङ्गल है, इस अर्थ में स्थापना व मङ्गल -इन दोनों का " a (कर्मधारय) समास हुआ है। उदाहरण के रूप में, स्वस्तिक आदि जो बनाये जाते हैं, वे , स्थापना मङ्गल कहलाते हैं। (हरिभद्रीय वृत्तिः) भूतस्य भाविनो वा भावस्य हि कारणं तु यल्लोके। तद्रव्यं तत्त्वज्ञैः सचेतनाचेतनं कथितम् // अस्यायं भावार्थः- 'भूतस्य' अतीतस्य ‘भाविनो वा' एष्यतो 'भावस्य' पर्यायस्य I'कारणं' निमित्तं 'यद्' एव 'लोके' 'तद् द्रव्यम्' इति।द्रवति गच्छति ताँस्तान्पर्यायान् क्षरति / - (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)cR 0898c&(r)(r)