________________ a ) (R ) (R (R ) (2 ) (R ) (R ) (R ) (2 ) प्रस्तुत प्रकाशन में आवश्यक नियुक्ति और उस पर रचित हरिभद्रीय वृत्ति- दोनों का - मूल एवं उनका हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है। व्याख्या के साथ-साथ विशेषार्थ भी ) M (जहां अपेक्षित समझा गया) दिया जा रहा है। इस प्रकाशन की समग्र योजना की संकल्पना में तथा उसके क्रियान्वयन में पूज्य प्रवर्तक ल श्री सुमन मुनि जी म. 'प्रज्ञामहर्षि' का योगदान ही प्रमुख निमित्त रहा है। वे श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन CM संघ में उत्तरभारतीय प्रवर्तक के रूप में जैन धर्म व दर्शन की महती प्रभावना कर रहे हैं। जैन साहित्य की श्रीवृद्धि के प्रति उनकी महती रुचि रही है। प्राकृत, संस्कृत आदि विविध भाषाओं के वे ज्ञाता हैं। न मैं उनके तपोमय व्यक्तित्व के प्रति अपनी श्रद्धा-वन्दना निवेदन करते हुए, इस ग्रन्थ के शेष भागों की / न सम्पन्नता के लिए उनके शुभाशीर्वाद की कामना करता हूं। अन्त में, पूज्य प्रवर्तक जी के सहयोगी ल कार्यदक्ष भंडारी मुनिश्री सुमन्तभद्र म. सा. (बाबा जी) के प्रति भी अपनी श्रद्धासिक्त वन्दना करना M आवश्यक कर्तव्य समझता हूं क्योंकि प्रस्तुत कार्य की संयोजना में उनकी उल्लेखनीय सहभागिता रही है। XII0ROSORRO900CROREOGROROR.