________________ 9080CREDICARB0RRORNOROR नियुक्तिकार भद्रबाहु कौन से? आचार्य भद्रबाहु नाम के दो आचार्य हुए हैं। एक हैं- छेदसूत्रकर्ता श्रुतकेवली स्थविर भद्रबाहु " (प्रथम), और दूसरे हैं- प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् वराहमिहिर के भाई, अष्टांगनिमित्त-ज्ञानी व मंत्रशास्त्रपारंगत " & भद्रबाहु (द्वितीय)। आचार्य शीलांक (वि. 8-9 शती) तथा मलधारी हेमचन्द्र (वि. 12वीं शती) ने / चतुर्दशपूर्वधर श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी को ही नियुक्तिकार माना है। किन्तु इस मान्यता को युक्तिसंगत। व प्रामाणिक नहीं माना जा सकता, क्योंकि स्वयं नियुक्तिकार ने दशाश्रुतस्कन्ध-नियुक्ति में छेदसूत्रकर्ता ल चतुर्दशपूर्वधारी अंतिमश्रुतकेवली भद्रबाहु को नमस्कार किया है- निश्चित ही यह नमस्कार तभी संगत न होता है जब हम नियुक्तिकार को भद्रबाहु (द्वितीय) मानें। इसी प्रकार, उत्तराध्ययन-नियुक्ति (गाथा-233) में नियुक्तिकार का कथन इस प्रकार है सव्वे एए दारा मरणविभत्तीह वणिया कमसो। सगलणिउणे पयत्थे जिणचउद्दसपुव्विं भासंति॥ अर्थात् ( उत्तराध्ययन के अकाममरणीय नामक अध्ययन से सम्बन्धित) मरणविभक्ति ब से सम्बन्धित सभी द्वारों का अनुक्रम से वर्णन किया है। वस्तुतः पदार्थों का सम्पूर्ण एवं विशद 1 वर्णन तो 'जिन' यानी केवली व चतुर्दशपूर्वधारी ही कर सकते हैं। उक्त कथन से स्पष्ट है कि a नियुक्तिकर्ता चतुर्दशपूर्वधर नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, नियुक्तियों में ऐसी घटनाएं व आचार्यों के प्रसंग वर्णित हैं जो श्रुतकेवली 21 ल भद्रबाहु के उत्तरवर्ती हैं। जैसे- नियुक्तियों में कालकाचार्य, पादलिप्ताचार्य, स्थविर भद्रगुप्त, वज्रस्वामी, - आर्य रक्षित, फल्गुरक्षित आदि ऐसे आचार्यों के प्रसंग वर्णित हैं, जो प्रथम भद्रबाहु से बहुत अर्वाचीन " हैं। अतः निश्चित ही नियुक्तियों की रचना निमित्तज्ञानी भद्रबाहु (द्वितीय) द्वारा ही की गई है। नियुक्तियों के श्रुतकेवली-रचित होने की मान्यता का कारण यह हो सकता है कि आवश्यक " & नियुक्ति का प्रारम्भ श्रुतकेवली भद्रबाहु (प्रथम) द्वारा किया गया हो, बाद में उसकी गाथाओं में क्रमशः . 8 वृद्धि होती रही हो और इसे अन्तिम रूप भद्रबाहु (द्वितीय) ने दिया हो। नियुक्ति-गाथाओं में वृद्धि होती है रहने की पुष्टि कई उदाहरणों से होती है। जैसे- आवश्यक नियुक्ति के प्रथम अध्ययन की 157 गाथाएं , A हरिभद्रीय वृत्ति में हैं, किन्तु आवश्यक चूर्णि में मात्र 57 गाथाएं ही हैं। निश्चय ही चूर्णि व हरिभद्रीय / * वृत्ति के मध्य 100 गाथाएं और जुड़ गई हैं। इतना ही नहीं, भद्रबाहु (द्वितीय) के बाद भी गाथाओं में " वृद्धि होते रहने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। का IV BOOROSORB0ROORBOBORROR * 22222333333333333322233333232222223333333333