________________ - RacecaReece 999999999999999 2233333333332-33333333333333333222323232223333 नियुक्ति गाथा-62-63 सकता है, जैसे दावानल एक ही समय में एक तरफ उद्दीप्त होता है तो दूसरे छोर पर वह बुझ ca रहा होता है, उसी प्रकार (बाह्य) अवधि भी किसी एक स्थान पर उत्पन्न होता है तो अन्य >> स्थान में च्युत (पतित, नष्ट) हो जाता है 162 // र विशेषार्थ बाह्यावधिज्ञान देशावधि ही है। टीकाकार के अनुसार बाह्यावधि के कई रूप होते हैं। या तो वह एक दिशा में ही स्थित पदार्थों को जानता है। या कुछ स्पर्द्धक विशुद्ध और कुछ अविशुद्ध -इस तरह मिश्रित होने से अनेक दिशाओं में जानता तो है, किन्तु बीच-बीच में व्यवधान आ जाता है, या क्षेत्रीय व्यवधान के कारण असम्बद्ध (टुकड़ों-टुकड़ों में) जानता है। या चारों ओर परिमण्डल आकार c का होता हुआ भी यह जीव अंगुल आदि की कुछ दूरी के व्यवधान के कारण पूर्णतया असम्बद्ध ca जानता है। (चूर्णिकार के मत में) जिस स्थान पर यह उत्पन्न होता है, उसी स्थान पर यह कुछ नहीं - स देख पाता। उस स्थान से कुछ हटकर, अंगुल, या अंगुल-पृथक्त्व (2 से नौ अंगुल तक) या संख्यात या असंख्यात योजन दूर जाकर देख पाता है। इसे ही बाह्य-लाभ कहा जाता है। उक्त विविध पक्षों में C कौन सा सही है, यह सब केवलिगम्य है- ऐसा मलधारी हेमचन्द्र ने विशेषावश्यक भाष्य (गा. 749) Cr की टीका में मत व्यक्त किया है। c . एक ही समय में उत्पाद व प्रतिपातादि-कभी तो यह बाह्यावधि एक समय में उत्पन्न होता , और प्रारम्भ में यह स्वल्प द्रव्य आदि को विषय करता हुआ उत्पन्न होता है और बढ़ता जाता है, & एवं क्रमशः अधिकाधिक द्रव्य-क्षेत्रादि को जानता है। कभी-कभी यह एक ही समय में उत्पन्न भी , a होता है, और पतनशील भी होता है, अर्थात् दोनों स्वरूप एक ही समय में उपलब्ध होते हैं। चूंकि यह देशावधि ज्ञान है, इसलिए एक दिशा में तिरछे रूप में संकुचित होता है तो आगे का भाग वृद्धियुक्त, होता है, या आगे से संकुचित हो रहा होता है तो तिरछे फैल रहा होता है। इसी तरह किसी एक दिशा में जितना अधिक उत्पाद होता है, उतना ही दूसरी दिशा में प्रतिपात (हास) होता है। यदि वलयाकार & रूप में समस्त दिशाओं में यह फैल रहा हो तो जिस एक समय में वलय-आकृति की वृद्धि हो रही हो तो उसी समय में वलय-संकोच हो रहा होता है- इत्यादि प्रकारों से एक समय में उत्पाद व प्रतिपात की संगति जाननी चाहिए। उपर्युक्त निरूपण से यह शंका भी समाप्त हो जाती है कि एक ही समय में उत्पाद व प्रतिपात कैसे सम्भव हैं। क्योंकि एक अंश में उत्पाद और (दूसरे) एक अंश में प्रतिपात यहां व माना गया है, अर्थात् विविध अंशों में यह संगत होता है, एक ही अंश में उत्पाद व प्रतिपात -ये दोनों नहीं प्रतिपादित किये जा रहे हैं। इसीलिए दावानल का दृष्टान्त यहां प्रस्तुत किया गया है। दावानल (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 259 388888888888888888888888888888888888888888