________________ IReceneRece नियुक्ति-गाथा-24 000000000 गुरुवत् भाषण और शास्त्र की प्ररूपणा करे (ऐसा गुरु के समक्ष किया जाय तो सम्भावित त्रुटि दूर & हो सकती है।)। शास्त्र-श्रवण की दृष्टि से बुद्धि के इन आठ गुणों की उपयोगिता को समझना चाहिए। 333333333333333333333333333333333333333333333 c (हरिभद्रीय वृत्तिः) एवं तावच्छ्रवणविधिरुक्तः, इदानीं व्याख्यानविधिमभिधित्सुराह (नियुक्तिः) सुत्तत्यो खलु पढमो, बीओ निज्जुत्तिमीसओ भणिओ। तइओ य निरवसेसो, एस विही भणिअ अणुओगे R4 // [संस्कृतच्छायाः-सूत्रायः खलु प्रथमः, द्वितीयो नियुक्तिमिश्रको भणितः।तृतीयश्च निरवशेषः एष , विधिः भणितः अनुयोगे॥] (वृत्ति-हिन्दी-) अभी श्रवण-सम्बन्धी विधि का कथन हुआ। अब व्याख्या(अनुयोग) सम्बन्धी विधि का (नियुक्तिकार) कथन करने जा रहे हैं (24) (नियुक्ति-अर्थ-) अनुयोग (व्याख्या) से सम्बन्धित विधि इस प्रकार कही गई हैca प्रथमतः सूत्र का अर्थ-बोध, दूसरा नियुक्ति के साथ अर्थबोध, तथा तीसरा समग्रता के साथ अर्थबोध। (हरिभद्रीय वृत्तिः) a (व्याख्या-) सूत्रस्यार्थः सूत्रार्थः। सूत्रार्थ एव केवलः प्रतिपाद्यते यस्मिन्ननुयोगे असौ व सूत्रार्थ इत्युच्यते।सूत्रार्थमात्रप्रतिपादनप्रधानो वा सूत्रार्थः। खलुशब्दस्त्वेवकारार्थः, स चावधारणे। " एतदुक्तं भवति-गुरुणा सूत्रार्थमात्राभिधानलक्षण एव प्रथमोऽनुयोगः कार्यः, मा भूत् प्राथमिकविनेयानां मतिसंमोहः। द्वितीयः' अनुयोगः सूत्रस्पर्शिकनियुक्तिमित्रक कार्य इत्येवंभूतो : भणितो जिनैश्चतुर्दशपूर्वधरैश्च। तृतीयश्च निरवशेषः' प्रसक्तानुप्रसक्तमप्युच्यते यस्मिन् स एवंलक्षणो निरवशेषः, कार्य इति।स 'एष' उक्तलक्षणो विधानं विधिः प्रकार इत्यर्थः। भणितः & प्रतिपादितः जिनादिभिः, क्व?, सूत्रस्य निजेन अभिधेयेन सार्धम् अनुकूलो योगः अनुयोगः। & सूत्रव्याख्यानमित्यर्थः।तस्मिन्ननुयोगेऽनुयोगविषय इति, अयं गाथार्थः // 24 // __|समाप्तं श्रुतज्ञानम्॥ -3333333388888888888888888888888888888888883 - 80CRORBRBRece@@cRB00000000 167