________________ 000000000 2233333333322322238233233 22222222222 नियुक्ति-गाथा-17 इस प्रकार 'अ' के नौ भेद हुए। इन नौ भेदों में से प्रत्येक के सानुनासिक व निरनुनासिक ca -इस प्रकार 2-2 भेद होते हैं और कुल अठारह भेद हो जाते हैं। इसी तरह 'इ', 'उ', 'ऋ' के भी 18-0 018 भेद समझने चाहिएं। अन्यों स्वरों की स्थिति इस प्रकार है- 'लु' के 12 भेद ही होते हैं, क्योंकि उसमें दीर्घ भेद, ce नहीं होता, अतः ह्रस्व लु के छः, प्लुत 'लु' के छः भेद, कुल बारह भेद हो जाते हैं। इसी प्रकार, ए, ऐ, ca ओ, औ-इन चारों में भी प्रत्येक के 12-12 भेद होते हैं, क्योंकि इनमें 'ह्रस्व' नहीं होता, दीर्घ व प्लुत से -ये दो भेद ही होते हैं। व्यञ्जनों में ह्रस्व आदि भेद नहीं होते। व्यञ्जनों का प्रायः स्वर के साथ उच्चारण होता है। अतः , स्वरों के भेद यहां बताए गए हैं। . दो अक्षरों के संयोग से बने पद घट-पट (आदि) हैं, तीन अक्षरों के संयोग से बने पद भुवन, जीवन आदि हैं, इसी प्रकार चार-पांच आदि अक्षरों के संयोग से बने पद हो सकते हैं। इन संयोगों में & भी भिन्नता देखी जा सकती है, जैसे-घट और व्याघ्र / घट (या पट) में स्वरान्तरित संयोग है, अर्थात् वह 'घ्' और 'ट्' के संयोग के बीच स्वर (अ) है। इसी प्रकार ‘पट' में भी समझना चाहिए। किन्तु , व्याघ्र' में घ व र् का संयोग स्वरानन्तरित है, दोनों के मध्य कोई स्वर नहीं है। इसी प्रकार 'हस्ती', 4 में भी समझना चाहिए / उक्त प्रकार 'संयोग' की भिन्नता के आधार पर द्वि-अक्षर, त्रि-अक्षर वाले पदों : & में भी (प्रत्येक के) दो-दो भेद हो जाएंगे। इसके अतिरिक्त, एक-एक अक्षर या अक्षर-संयोग स्व-. पर्यायों व परपर्यायों की अपेक्षा अनन्तरूपता लिए हुए है। (विशेषावश्यक भाष्य, गाथा 478 व 4800 के अनुसार) किसी अन्य वर्ण से संयुक्त हुए बिना ही एक अक्षर के जो उदात्तादि आत्मगत पर्याय हैं, , ca वे अनन्त हैं क्योंकि उनके वाच्य द्रव्य अनन्त हैं, उन वाच्य अनन्त द्रव्यों में प्रत्येक को कथन करने की " व पृथक्-पृथक् शक्ति है। इसी तरह उनके पर पर्याय' भी हैं, अर्थात् अन्य वर्गों के पर्याय जो उसे अन्य वर्णों , से पृथक् करते हैं, वे भी अनन्त हो जाते हैं। अर्थात् वर्णविशेष के अस्तित्व से जुड़े स्वपर्याय' हैं और , नास्तित्व से जुड़े पर्याय 'परपर्याय' हैं, और अस्तित्व-नास्तित्व, 'भावाभावात्मक' पदार्थ के ही अंश हैं। 1 यहां शंका उठाई गई है कि अक्षर तो सारे बावन ही हैं, तो उसके संयोग अनन्त कैसे हो / गए? उत्तर दिया कि उनके अभिधेय पदार्थों की संख्या अनन्त है। एक ही परमाणु को द्वि-प्रदेशी, " & त्रिप्रदेशी आदि रूपों में देखें तो एक 'परमाणु' शब्द के अनेकानेक भिन्न-भिन्न अभिधेय होते हैं। अतः // अभिधेय की भिन्नता के कारण अभिधान (वाचक) की भिन्नता हो.जाती है, (अर्थात् भिन्न अभिधेय , धर्मों को कहने के लिए भिन्न-भिन्न वाचक शब्द होते हैं) इस प्रकार, अक्षर संयोग (रूप वाचक पदों) " की अनन्तता सिद्ध होती है। (r)(r)(r)(r)(r)Reneck@@ce@00000000 - 08. 145