________________ -RRRRRRRRR 000000000 नियुक्ति-गाथा-13-15 अनुकूल सामग्री न मिलने के कारण मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाते, वे हैं- जातिभव्य / (दिगम्बर साहित्य ca में जातिभव्य को अभव्यसमभव्य कहा गया है।) यहां चरम द्वार में 'भव्य' से तात्पर्य है- जातिभव्य को छोड़ कर आसन्न भव्य एवं दूरभव्य / a (हरिभद्रीय वृत्तिः) ___साम्प्रतम् आभिनिबोधिकजीवद्रव्यप्रमाणमुच्यते-तत्र प्रतिपत्तिमङ्गीकृत्य विवक्षितकाले , कदाचिद् भवन्ति कदाचिन्नेति। यदि भवन्ति जघन्यत एको द्वौ त्रयो वा / उत्कृष्टतस्तु 1 क्षेत्रपल्योपमासंख्ये यभागप्रदेशराशितुल्या इति / पूर्वप्रतिपन्नास्तु जघन्यतः // & क्षेत्रपल्योपमासंख्येयभागप्रदेशराशिपरिमाणा एव, उत्कृष्टतस्तु एभ्यो विशेषाधिका इति।उक्तं , द्रव्यप्रमाणम्। इदानीं क्षेत्रद्वारम्'।तत्र नानाजीवान् एकजीवं चाङ्गीकृत्य क्षेत्रमुच्यते। तत्र सर्व एवाभिनिबोधिकज्ञानिनोलोकस्य असंख्येयभागे वर्तन्ते।एकजीवस्तुईलिकागत्या गच्छन्नूर्ध्वम् / अनुत्तरसुरेषु सप्तसु चतुर्दशभागेषु वर्तते, तेभ्यो वाऽऽगच्छन्निति।अधस्तु षष्ठीं पृथ्वी गच्छंस्ततो , ca वा प्रत्यागच्छन् पञ्चसु सप्तभागेषु इति, नातः परमधः क्षेत्रमस्ति, यस्मात् सम्यग्दृष्टेः अधः / सप्तमनरकगमनं प्रतिषिद्धमिति। . (वृत्ति-हिन्दी-) अब (1) आभिनिबोधिक (ज्ञान वाले) जीव द्रव्यों का प्रमाण (परिमाण) , & बताया जा रहा है- प्रतिपत्ति (प्राप्ति) की दृष्टि से (प्रतिपद्यमान जीवों की अपेक्षा करके कहा जाय तो) विवक्षित समय में कभी वे होते हैं और कभी नहीं होते हैं। यदि होते हैं (अर्थात् , 9 प्रतिपद्यमान होकर आभिनिबोधिक ज्ञान प्राप्त करने वाले जो हैं, उनको दृष्टि में रख कर कहें) तो जघन्यतया (कम से कम) एक, दो या तीन तक हो सकते हैं। उत्कृष्टतया उनका , < सद्भाव (द्रव्य राशि प्रमाण) क्षेत्रपल्योपम के असंख्येय भाग रूप प्रदेश-राशि के समान , & होता है। पूर्वप्रतिपन्न तो जघन्यतया क्षेत्रपल्योपम के असंख्येय भाग रूप प्रदेशराशि के 2 समान (परिमाण वाले) होते हैं, और उत्कृष्टतया (अधिक से अधिक) इन (जघन्य पूर्वप्रतिपन्नों) , से विशेष अधिक (परिमाण वाले) होते हैं। इस प्रकार 'द्रव्यप्रमाण' का निरूपण पूरा हुआ। ___अब (2) क्षेत्र द्वार का निरूपण किया जा रहा है। इसमें क्षेत्र का कथन नाना जीवों .. 6 और एक जीव -दोनों की (पृथक्-पृथक्) अपेक्षा से किया जाता है। (भव्यजीवों की अपेक्षा से) सभी आभिनिबोधिकज्ञानी लोक के असंख्येय भाग में हैं (अर्थात् वे सभी पिण्ड रूप में " / हो तो लोक के असंख्येय भाग को ही व्याप्त करते हैं), किन्तु एक जीव (मरकर) ईलिका-1 - @ @cr@908RSecr@ne@ @ @ @ @ 129 333333333333333333333333333333333333333333333 333333333333333333333333333333333333333333333