SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परम श्रद्धेय, प्रज्ञामहर्षि, श्रमणसंघीय सलाहकार, उत्तरभारतीय प्रवर्तक, मंत्री निश्रा सुमनकुमार जी म. सा. का संक्षिप्त जीवन परिचय श्रमणसंघीय सलाहकार उत्तरभारतीय प्रवर्तक, मंत्री, स्पष्टवक्ता, विद्वद्वर्य, प्रज्ञामहर्षि, परम श्रद्धेय श्री सुमनकुमार जी म. सा. श्रमणसंघ के एक महान् संत हैं / जन-जन को आलोक प्रदान करते हुए 'तिन्नाणंतारयाणं' के पद को सार्थक कर रहे हैं। आपकी वाणी में ओज है, व्यवहार में माधुर्य है और हृदय में सरलता, करुणा एवं सद्भावना की त्रिवेणी प्रवहमान है। वस्तुत: संतों के जीवन को शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता, क्योंकि उनके उपकार अनंत होते हैं, और अनंत को सीमाओं में बद्ध नहीं किया जा सकता है। तथापि बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी श्रद्धेय प्रवर्तकश्री जी के जीवन को लघु शीर्षकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का यह एक विनम्र प्रयास है। जन्म: राजस्थान प्रान्त के अंतर्गत बीकानेर राज्य। बीकानेर जिले में नोखामण्डी, सन्निकट ग्राम पांचु। इसी ग्राम के निवासी दम्पति श्री भीवराज जी चौधरी एवं श्रीमती वीरांदे। जाति जाट, वंश गोदारा। विक्रम | संवत् 1992, माघ शुक्ल पंचमी (वसंत पचंमी), ई. सन् 1936को एक पुण्यात्मा ने वीरांदे की पावन कुक्षी से जन्म लिया।नामकरण किया गया-गिरधारी। गिरधारी लाल के एक बडे भ्राता थे।शैशव-अवस्था में ही माता-पिता का वियोग हो गया। मातृ-पितृ वियोग के पश्चात् गिरधारीलाल को पुन: ममता मिली- वयोवृद्धा गुरुणीवर्या श्री रुक्मां जी से। आपश्री बृहद् नागौरी लौकागच्छीय उपाश्रय की उपासिका थीं। आपको बालक में शुभ लक्षण - दृष्टिगोचर हुए। संघ की आज्ञा प्राप्त करके बालक को सुशिक्षित करना प्रारंभ किया तथा व्यवहारिक शिक्षा 'सेठिया जैन हाई स्कूल' में सम्पन्न होने लगी। तेरह वर्ष की अवधि तक सांगोपांग अध्ययन करके युवा गिरधारी पंजाब प्रान्त में आ गए। सत् संगति से युवावस्था में प्रवेश करते ही आपश्री के हृदय में वैराग्य उत्पन्न हुआ जो क्रमश: सुदृढ़ होता गया। अंतत: आप पंजाब प्रान्त के तत्कालीन युवाचार्य पण्डित-रत्न श्री शुक्लचन्द्र जी म. सा., तथा मुनिश्री महेन्द्रकुमार जी म. सा. की सेवा में शाहकोट (जि. जालंधर) पहुंच गये। वहां आपका ज्ञानार्जन सुचारु रूप से सम्पन्न होने लगा। दीक्षा: उपर्युक्त महापुरुषों के त्याग-वैराग्य, शास्त्र-ज्ञान आदि सद्गुणों ने आपके मानस को आकर्षित किया। महापुरुषों के चरण-सरोजों में रहकर आप अपने को धन्य समझने लगे। आपकी धर्मश्रद्धा,
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy