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________________ हम अज्ञान को लें। आदमी नहीं जानता। किसी कर्मशास्त्री से पूछो तो वह कहेगा-यह आदमी नहीं जानता। इसका मूल कारण है। ज्ञानावरण कर्म का उदय। इस व्यक्ति की चेतना को ज्ञान का आवरण प्रभावित कर रहा है, इसलिए इसके ज्ञान का विकास नहीं हो पा रहा है। मानसशास्त्री का उत्तर दूसरा होगा। वह कहेगा-इस व्यक्ति का मस्तिष्क विकसित नहीं है, इसलिए इसमें ज्ञान का विकास कम है। मानसशास्त्री शरीर के आधार पर कारण ढूंढ़ेगा और उन कारणों का विश्लेषण करेगा। ___ एक प्रश्न होता है कि मस्तिष्क विकसित क्यों नहीं हुआ? इसका भी कोई कारण अवश्य होना चाहिए। कारण अवश्य है। यह कारण छिपा हुआ है सूक्ष्म शरीर में। वह स्थूल शरीर में प्रकट नहीं है। उस व्यक्ति के ज्ञान के आवरण का इतना प्रबल उदय है कि ज्ञान का संवाहक अवयव बना ही नहीं या बना है तो अधूरा है। ज्ञानावरण के कारण ही मस्तिष्क विकसित नहीं हुआ है। अमनस्क जीवों (Non Vergetta) में पृष्ठरज्जु और मस्तिष्क नहीं होते। समनस्क जीवों (Vergetta) के पृष्ठरज्जु और मस्तिष्क होते हैं। फिर भी उनका विकास समान नहीं होता। ज्ञानावरण-विलय के तारतम्य के आधार पर वह तरतमतायुक्त होता है। ___ एक व्यक्ति जानता है। उसमें ज्ञान है। पर वह करने में समर्थ नहीं है। अपने आपको अकर्मण्य पाता है। कर्मशास्त्र कहेगा-इसका भी कारण है। वह कारण है-अन्तराय कर्म का उदय। वह कर्म उस व्यक्ति की शक्ति को बाधित कर रहा है, उसे स्खलित कर रहा है। वह कर्म शक्ति का प्रतिघात कर रहा है, उसमें अवरोध उत्पन्न कर रहा है। वह उसकी कर्मजा शक्ति में सहयोगी नहीं दे रहा है, बाधा पहुंचा रहा है। ___ दो प्रकार की क्षमता है-योग्यात्मक क्षमता और क्रियात्मक क्षमता। योग्यात्मक क्षमता आत्मा का गुण है। क्रियात्मक क्षमता आत्मा और शरीर के योग से निष्पन्न होती है। कर्मशास्त्र की भाषा में योग्यात्मक क्षमता को ‘लब्धिवीर्य' और क्रियात्मक क्षमता को 'करणवीर्य' कहा जाता है। समस्या का मूल : मोहकर्म 67
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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