________________ हमारा जीवन केवल पचास वर्ष का ही जीवन होता तो सहज ही हमें यह आश्चर्य हो सकता था कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। किन्तु यह आश्चर्य ही एक बिन्दु है और उस बिन्दु पर हम पहुंचकर कुछ रुक सकते हैं तथा अतीत की ओर लौटने को बाध्य हो सकते हैं। तब हमें ज्ञात होता है कि इस व्यक्ति का जीवन पचास वर्ष का ही नहीं है, और पीछे का है। इसका तात्पर्य यह है कि इस व्यक्ति का आचरण, पचास वर्ष में होने वाले जो व्यवहार हैं, उनका प्रतिफलन ही नहीं है किन्तु यह और किसी तत्त्व का प्रतिफलन है, जहां से कि यह फलित हो रहा है। __ अतीत का दर्शन बहुत विचित्र होता है। आप यह न मानें कि वर्तमान का क्षण समाप्त होते ही सब-कुछ समाप्त हो जाता है। संसार में दो प्रकार के पदार्थ हैं-विनाशी और अविनाशी, अनश्वर, नित्य और अनित्य। हम केवल नित्य को ही मानकर न चलें, केवल अनित्य को ही मानकर न चलें। नित्य और अनित्य, नश्वर और अनश्वर, शाश्वत और अशाश्वत-दोनों की संगति के आधार पर कुछ निष्कर्ष निकालें तो हमारे निष्कर्ष सही होंगे; अन्यथा वे निष्कर्ष गलत साबित होंगे। यह नित्य और अनित्य की जो युति है, यह क्षणिक और अक्षणिक की जो युति है, उस युति के आधार पर हम निष्कर्ष निकालें तो वह यह होगा कि जिसका अस्तित्व है, वह कुछ भी नष्ट नहीं होता। विज्ञान की भाषा में कहा जाता है कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती। पदार्थ भी कभी नष्ट नहीं होता। जो जितना है, वह उतना ही था और उतना ही रहेगा। भगवान् महावीर ने यही कहा-द्रव्य कभी नष्ट नहीं होता। पर्याय बदलती रहती है। वह परिवर्तनशील है। उसमें रूपांतरण होता रहता है। मूलं कभी नष्ट नहीं होता। सत्ता कभी नष्ट नहीं होती। जिसका अस्तित्व स्थापित है, वह कभी नष्ट नहीं होता। पर्याय भी चिरकालिक होते हैं। वे भी तत्काल नष्ट नहीं होते। ___ हमारे शरीर से तदाकार प्रतिकृतियां निकलती हैं। प्रत्येक प्राणी के शरीर से नहीं, किन्तु प्रत्येक पदार्थ से उसी आकार की प्रतिकृतियां निकलती हैं और वे आकाश में फैल जाती हैं। हमारे चिन्तन की प्रतिकृतियां निकलती कर्म : चौथा आयाम 23