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________________ राज्य-शासन के हाथ में नहीं है। वह सुख के साधन जुटा सकता है। किंतु सुख का साधन देने पर भी मानसिक वृत्तियां यदि सुख को भोगने में सक्षम नहीं हैं तो आदमी सुखी नहीं बन सकता। हमारी यह धारणा स्पष्ट होनी चाहिए कि सुख की अनुभूति और दुःख के साधन एक नहीं हैं, दो हैं। दुःख की अनुभूति और दुःख के साधन एक नहीं, दो हैं। . जब यह धारणा स्पष्ट हो जाती है तब अनेक समस्याएं अपने आप समाहित हो जाती हैं। विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था में पहली बात यह है कि संपदा व्यक्ति-व्यक्ति के पास पहुंचे। वह कहीं केन्द्रित न हो। समूचे समाज के पास सम्पदा पहुंचे। किन्तु वह शक्ति के प्रयोग के द्वारा, बल-प्रयोग के द्वारा या हिंसा के द्वारा नहीं, एक सहज स्वीकृत व्यवस्था के द्वारा पहुंचे। उस व्यवस्था की पृष्ठभूमि में अहिंसा का दर्शन होता है। अहिंसा के दर्शन का सिद्धांत है कि सुख और सुख के साधन दो हैं। दुःख और दुःख के साधन दो हैं। राजनीति का सिद्धांत इसे मान्य नहीं करता। राजनीति में जो सुख का साधन है वही सुख है और जो दुःख का साधन है वही दुःख है। किन्तु जब हम दर्शन की भूमिका पर विचार करते हैं तब यह भेदरेखा खिंच जाती है कि सुख का साधन अलग होता है और सुख अलग होता है। दुःख का साधन अलग होता है और दुःख अलग होता है। - भगवान् महावीर ने एक आचार-संहिता दी। उसमें लाखों व्यक्ति दीक्षित हुए। उस आचार-संहिता में दो सूत्र थे। पहला सूत्र था-अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रह / दूसरा सूत्र था-महा आरंभ और महा परिग्रह। महा आरंभ और महा परिग्रह को आज की भाषा में केन्द्रित अर्थ-व्यवस्था और केन्द्रित सत्ता कह सकते हैं। अल्प आरंभ और अल्प परिग्रह को आज की भाषा में विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था और विकेन्द्रित सत्ता कह सकते .. हैं। जहां परिग्रह अल्प है, वहां हिंसा भी अल्प है। जहां परिग्रह महान् _है, वहां हिंसा भी महान् है। हिंसा. के लिए परिग्रह नहीं होता, किन्तु परिग्रह के लिए हिंसा होती है। हिंसा परिग्रह का निमित्त है। जिस व्यक्ति ... के मन में परिग्रह की कोई भावना नहीं है, वह व्यक्ति हिंसा नहीं कर विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था और कर्मवाद 263
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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