________________ वाले समझ सकते हैं कि घर का काम न संभाल सकने के कारण आंखें मूंदकर बैठ जाना ही ध्यान है। ऐसा पलायन भी संभवतः पारिवारिक और सामाजिक स्थिति को नया मोड़ दे सकता है। नयी चेतना का जागरण हो सकता है और उससे व्यवहार की शुद्धि, प्रामाणिकता, सचाई का प्रादुर्भाव हो सकता है। उस स्थिति में परिवार एक नया परिवार बन सकता है और समाज एक नया समाज बन सकता है। ऐसा पलायन बुरा भी क्या है? अनेकान्त को समझने वाला किसी पलायन से नहीं डरता। वह सापेक्षता से अर्थ की मीमांसा करता है। वह जान जाता है कि पलायन अच्छा भी होता है और बुरा भी होता है। ध्यान को कोई पलायन माने तो भले ही माने, पर यह पलायन भी समस्या का समाधान दे सकता है। जब संवेग और वैराग्य की स्थिति बनती है, तब समस्याएं सुलझती हैं। तीन बातें हैं-कर्म, कर्म और अकर्म। हमारे साथ कर्म का बंधन है और कर्म का यह बंधन नये बंधन को पैदा करता है। बंधन बंधन को जन्म देता है। सजातीय सजातीय को जन्म देता है। कर्म से कर्म का बन्धन नहीं टूटता। अकर्म से कर्म का बन्धन टूटता है। हमें अकर्म में जाना होगा। कर्म को क्षीण करने का एकमात्र उपाय है"अकर्म। प्रश्न था कि क्या ध्यान से कर्म का क्षय होता है? यदि होता है तो ध्यान की बहुत बड़ी सार्थकता है। यदि ध्यान से बन्धन टूटता है तो उसकी बहुत बड़ी सार्थकता है। यदि ध्यान से कर्म का क्षय नहीं होता, बंधन नहीं टूटता तो फिर ध्यान का कुछ भी प्रयोजन नहीं रहता। एक घंटा ध्यान किया और कुछ ताजगी आ गई, विश्राम मिला, शान्ति मिली तो यह ध्यान का प्रासंगिक फल है, गौण फल है। यदि इतने मात्र से ही संतोष कर लिया जाता है तो ध्यान के मुख्य फल की ओर ध्यान नहीं जाता। ध्यान का मुख्य प्रयोजन है कार्मिक बन्धन और पुराने संस्कारों से छुटकारा पाना। ये पुराने संस्कार ही भावों को दूषित बनाते हैं, मलिनता पैदा करते हैं। जब ये संस्कार टूटते हैं, तब व्यक्तित्व का पूरा रूपान्तरण होता है। कर्म का निर्जरण ही ध्यान का मुख्य प्रयोजन है। इस प्रयोजनपूर्ति के लिए यदि दस दिन लगाए जाते हैं तो थोड़े 260 कर्मवाद