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________________ है। इस प्रमाद के कारण अनेक समस्याएं उभर रही हैं। आप क्षमा करें। मेरी बात पर ध्यान दें। राजा ने सुना-अनसुना कर दिया। मन्त्री की बात पर ध्यान नहीं दिया। मन्त्री ने सोचा-अब कहने से कुछ होने वाला नहीं है। मुझे कोई दूसरा ही उपाय करना चाहिए। एक दिन मन्त्री राज्य को छोड़कर चला गया। वह संन्यासी बनकर एक गुफा में साधना करने लगा। मन्त्री की अनुपस्थिति में राज्य की स्थिति और अधिक बिगड़ गई, क्योंकि वही सारे कार्यभार को संभाले हुए था। राजा को पता चला। उसने पूछा-मन्त्री कहां है? सभासदों ने कहा-वह राज्य को छोड़कर संन्यासी बन गया है। राजा ने सोचा-मैं राज्य का संचालन नहीं कर सकता। मन्त्री को ही बुलाना होगा। वह कुछेक कर्मचारियों को साथ लेकर पहाड़ी पर पहुंचा, जहां मन्त्री संन्यासी के वेश में साधना कर रहा था। राजा ने कहा-मन्त्री! पलायन कर गए? यहां आकर संन्यासी का वेश बनाकर बैठ गए? राज्य का कार्य कैसे चलेगा? मन्त्री बोला-राजन्! मुझे विरक्ति हो गई है। मैं संन्यासी ही बना रहूंगा। - राजा कर्म की. भाषा को जानता था। अकर्म के रहस्य से वह अजान था। वह बोला-मन्त्रीवर! यह क्या सोचा तुमने! जब तुम मन्त्री पद पर थे तब सर्वाधिकार सम्पन्न थे। इतने बड़े राज्य के तुम सर्वोच्च अधिकारी थे। अब बताओ, तुम साधु बन गए? क्या मिला तुमको? रोटी के लिए भी तुम्हें आज दूसरों के आगे हाथ पसारना होता है। संन्यासी बोला-राजन्! बहुत कुछ मिला है। जो पहले प्राप्त नहीं था, आज मुझे वह प्राप्त है। देखें, पहले मुझे आपके पास आना पड़ता था, आज इस संन्यस्त अवस्था में आपको मेरे पास आना पड़ा है। यह संन्यास का चमत्कार है। यह अकर्म का चमत्कार है। . कोई इसे पलायन कह सकता है। पर पलायन कोई बुराई नहीं है। कभी-कभी पलायन स्थिति का समाधान दे देता है, समस्या को सुलझा देता है। ___ध्यान को भी कुछेक व्यक्ति पलायन कह सकते हैं और परिवार अकर्म और पलायनवाद 256
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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