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________________ उसने कहा-दोनों देवियां मेरे लिए शक्ति-सम्पन्न हैं। मैं किसको न्यून या अधिक बताऊं? फिर भी मुझे विवाद निपटाना है। आप दोनों सामने वाले पेड़ को छूकर आएं। मैं अपना निर्णय दे दूंगा। दोनों पेड़ छूकर आ गईं। सेठ बोला-दरिद्रतादेवी! तुम जाते समय बहुत सुन्दर लगती हो। लक्ष्मीदेवी! तुम आते समय बहुत सुन्दर लगती हो। दोनों सुन्दर हो। एक जाते समय सुन्दर और एक आते समय सुन्दर। दोनों में कोई अन्तर नहीं है। अन्तर केवल आने-जाने का है। ___हर्ष और शोक में कौन शक्तिशाली है, कौन अच्छा है, कौन बुरा है, नहीं कहा जा सकता। हर्ष भी अच्छा नहीं है, क्योंकि उसके साथ शोक जुड़ा हुआ है। शोक भी बुरा नहीं है, क्योंकि उसके साथ हर्ष जुड़ा हुआ है। जब दोनों जुड़े हुए हैं तो यही कहा जा सकता है कि हर्ष आते समय अच्छा लगता है और शोक जाते समय अच्छा लगता है। ये दोनों प्रणम्य हैं। . जिस व्यक्ति में प्रसन्नता का भाव विकसित हो जाता है, वह हर्ष-शोक, सुख-दुःख आदि द्वन्द्वों से ऊपर उठ जाता है। ___ प्रेक्षाध्यान का मुख्य उद्देश्य है-भावात्मक परिवर्तन। भाव का सम्बन्ध कर्मों के साथ है। हमारी आन्तरिक चेतना के साथ वे सब जुड़े हुए हैं। वे भाव विकृतियां और बीमारियां पैदा करते हैं। बीमारियां शारीरिक और मानसिक-दोनों प्रकार की होती हैं। भावों में परिवर्तन आने पर विकृतियां और बीमारियां मिट जाती हैं। भाव को भाव के द्वारा ही बदला जा सकता है। हीरे को हीरा ही काट सकता है। सजातीय को सजातीय काट सकता है। इसी प्रकार भाव के द्वारा ही भावात्मक परिवर्तन घटित हो सकता है। प्रेक्षा और अनुप्रेक्षा, ये दोनों भाव हैं। हम इनके प्रयोग से विधायक भावों का प्रयोग कर निषेधात्मक भाव को समाप्त कर सकते हैं। इससे कर्म का वलय टूटता है, छिन्न-भिन्न होता है। भाव का जादू 251
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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