________________ पढ़ नहीं पाता, बौद्धिक विकास कम होता है, स्मृति-शक्ति पर्याप्त नहीं होती, तब स्थिति जटिल बन जाती है। कुछ दिन पहले पिता अपने पुत्र को साथ लेकर मेरे पास आया। वह बोला-महाराज! बड़ी समस्या हो गई है। मेरा यह लड़का परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया। उसी दिन से यह आत्महतया की बात सोचता रहता है। न जाने क्या हो गया इसे! __मैंने सोचा-अनुत्तीर्ण होने पर प्रति वर्ष अनेक आत्महत्याएं होती हैं। पर ऐसा क्यों होता है? मेरी दृष्टि में इसका कारण है यह कि जब बच्चा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण होता है, तब माता-पिता प्रसन्नता बांटते हैं, हर्ष मनाते हैं, मिठाइयां बांटते हैं, भोज करते हैं, और भी न जाने क्या-क्या करते हैं। जब उत्तीर्ण होने पर अधिक हर्ष बांटा जाएगा तो अनुत्तीर्ण होने पर अधिक शोक भी बांटा जाएगा। शोक बांटा नहीं जाता, भोगा जाता है। हर्ष तो बांटा जाता है, क्योंकि सभी लोग उसमें सहभागी बनते हैं, उसे लेते हैं। शोक बांटा नहीं जाता क्योंकि कोई भी उसे नहीं लेता। शोक को भोगना ही पड़ता है। भूख का कोई भी व्यक्ति हिस्सा नहीं बांटता। भोज में अनामन्त्रित हजारों लोग अनायास ही आ जाते हैं। भोज में निमन्त्रण दिया जाता है। भूख का कभी निमन्त्रण नहीं दिया गया। भूख व्यक्ति को ही भोगनी पड़ती है। कोई भी भाव एकान्ततः अच्छा या बुरा नहीं होता। एक पौराणिक कहानी है। एक बार दरिद्रता और लक्ष्मी-दोनों में विवाद हो गया कि कौन अधिक शक्ति-सम्पन्न है। वाद-विवाद से समाधान नहीं मिला। एक नगर में एक न्यायप्रिय सेठ रहता था। दोनों अपने विवाद का निपटारा करने उसके पास आयीं। सेठ ने दोनों के तर्क सुने। वह असमंजस में पड़ गया। उसने सोचा, यदि लक्ष्मीदेवी को नाराज करूंगा तो दर-दर का भिखारी बन जाऊंगा, यदि दरिद्रतादेवी को अप्रसन्न करूंगा तो न जाने यह क्या कहर ढाए? उसने उपाय ढूंढ़े। वह अनेकान्त की शरण में गया। वह जानता था कि जो एकान्तदृष्टि से सोचता है वह आग्रह में फंस जाता है, सम्यक् समाधान नहीं ढूंढ़ पाता। जो सापेक्षता से सोचता है, वह समीचीन समाधान दे सकता है। उसने सापेक्षता का सहारा लिया। 250 कर्मवाद