________________ है। धर्म की पृष्ठभूमि है पदार्थ का त्याग। जब पदार्थ का त्याग प्रारम्भ होता है, तब धर्म का प्रारम्भ होता है। धर्म का आदि-बिन्दु है पदार्थ का त्याग और प्रस्तुत प्रश्न खड़ा हुआ है बंगले को देखकर। बहुत सारे लोग यही देखते हैं कि इसने बेईमानी की और आज दस बिल्डिंगें खड़ी कर लीं। इस बेचारे ने ईमानदारी से काम किया और आज किराए के मकान में गुजारा कर रहा है। एक भाई ने कहा-मैं भारत सरकार के एक संस्थान में नौकरी करता हूं। मेरे हाथ में इतने अधिकार हैं कि मैं चाहूं तो अनेक कोठियां खड़ी कर सकता हूं, पर मन नहीं मानता कि ऐसा करूं! यह सारा व्यक्ति की रीति-नीति पर निर्भर करता है। इसे धर्म के साथ जोड़ दिया। कभी-कभी हम आत्म-भ्रान्तियों में बह जाते हैं। हम विरोधाभासी चिन्तन में पलते रहते हैं। धर्म का मानदण्ड बना दिया कोठियों को, सुख सुविधाओं को और कारों को। धर्म के साथ इनका कोई सम्बन्ध नहीं है। कर्मवाद के विषय में चर्चा करते समय हम इस प्रश्न पर बहुत गहराई से विचार करें। यह प्रश्न जटिल और उलझाने वाला है। न जाने कितने लोग इस प्रश्न के आधार पर नैतिक आस्था खोकर अनैतिक बन जाते हैं। एक व्यक्ति बहुत प्रामाणिकता के साथ चला और जीवन की संध्या में सोचने लगा-मैं नैतिकता और सचाई पर रहा, इसलिए आज कठिनाइयां झेलनी पड़ रही हैं। अनैतिकता का आचरण करने वाले आज मौज कर रहें हैं। उनके बाल-बच्चे आराम का जीवन जी रहे हैं और मेरे बच्चे दीनता का जीवन जी रहे हैं। नैतिकता, सचाई आदि कुछ नहीं है। इनसे कुछ भी होना जाना नहीं है। वह व्यक्ति जीवन की संध्या में नैतिकता को तिलांजलि देकर, अनैतिकता की शरण में आ गया। ऐसा न जाने कितने लोग करते होंगे। हम यदि किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहते हैं तो हमें दोनों बातों को पृथक्-पृथक् करना होगा। चेतना और चिन्तन का परिवर्तन करना होगा। आज आदमी ने धर्म के साथ जिन परिणामों को जोड़ रखा है, यदि ये परिणाम धर्म के हैं तो चिन्तन करना होगा। धर्म से यदि धन और मकान मिलता है, सुख-सुविधा के साधन मिलते हैं तो यह प्रश्न 222 कर्मवाद