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________________ राग-द्वेष की तीव्रता होती है, वहां मिट्टी गीली हो जाती है और वह भीत पर चिपक जाती है। उससे कर्मबंध तीव्र होता है। जिस प्रवृत्ति के साथ राग-द्वेष मंद होता है, वही मिट्टी सूखी होती है। वह भींत पर चिपकती नहीं, उससे कर्मबंध मंद होता है। कर्म-परमाणु आते हैं, आत्म-प्रदेशों का स्पर्श कर झड़ जाते हैं। ___ कर्म कैसे करना चाहिए, यह एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है और इससे अध्यात्मवाद ध्यान का सही मार्ग उद्घाटित होता है। यदि ध्यान के द्वारा हमारी प्रवृत्ति में कोई परिवर्तन न आए, कर्म की धारा न बदले, कैसे करें-यह सिद्धांत फलित न हो तो ध्यान करने का कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। केवल आंखें मूंदकर बैठ जाना, कुछ क्षणों तक शान्ति या विश्राम का अनुभव कर लेना-इतना ही पर्याप्त नहीं है। ध्यान की निष्पत्ति है-'कर्म कैसे करें' की अनुभूति। आज उद्योग के क्षेत्र में. 'Know How' का सिद्धान्त आ गया है। उसी के आधार पर एक उद्योगपति रोज नये-नये उद्योग स्थापित करता है, जिससे कि पहले के उद्योगों को पोषण मिल सके। कर्म कैसे करें-यह भी अध्यात्मवाद का 'नो हाउ' का सिद्धान्त है। जब तक यह नहीं जाना जाता, तब तक ध्यान करने की भी सार्थकता नहीं होती। ध्यान की सार्थकता तभी होती है, जब हमें यह बोध हो जाता है कि हम प्रवृत्ति करें तो कैसे करें? प्रवृत्ति के साथ राग-द्वेष की धारा अत्यन्त मंद हो। राग-द्वेष रहे ही नहीं, यह तभी सम्भव है, जब व्यक्ति वीतराग बन जाता है। जब तक वह वीतराग नहीं बनता, तब तक राग-द्वेष सर्वथा क्षीण नहीं होता, मंद अवश्य हो सकता है। जब राग-द्वेष मंद होता है, तब कर्म का दोष भी मंद हो जाता है। बहुत सारे लोग इस बात को नहीं जानते। . स्कंधक ने काचर को छीला, इसलिए चमड़ी उधेड़ी गई। यह मूल बात नहीं है। लोगों ने केवल स्थूल बात पकड़ी है। मूल छिपा रहता है गहराई में। व्यक्त होता है फूल और पत्ता। स्कंधक ने काचर को छीला, उसका परिणाम नहीं था कि उनकी चमड़ी उधेड़ी गई। परिणाम इसलिए आया कि काचर कैसे छीला? किस दक्षता से छीला? कैसे के अतीत को पढ़ो : भविष्य को देखो 215
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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