________________ को कब और कैसे करना चाहिए? कर्म का अर्थ है--प्रवृत्ति। प्रवृत्ति तब करनी चाहिए जब अनिवार्यता हो / अनेक लोग इस सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हैं कि प्रतिपल कर्म प्रवृत्ति करते रहना चाहिए। कोई-न-कोई काम करते रहना चाहिए। हम इस बात से सहमत नहीं हैं। काम या प्रवृत्ति हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए। काम प्रयोजन की निष्पत्ति है। काम उतना हो जितनी अनिवार्यता है। आज काम अनेक प्रकार के हो गए हैं। सिनेमा का टी. वी. देखना भी एक काम है, तांश-चौपड़ खेलना भी एक काम है। यह काम तो हो सकता है पर हमारा उद्देश्य नहीं हो सकता। काम आवश्यकता से जुड़ा होना चाहिए। आवश्यकता की पूर्ति के लिए काम। यह है काम का उद्देश्य। ___ दो प्रश्न हैं। पहला प्रश्न है-कार्य कब करना चाहिए? जब आवश्यकता हो तब कार्य करना चाहिए। दूसरा प्रश्न है-कार्य क्यों करना चाहिए? कार्य जीवन-यात्रा को चलाने के लिए करना चाहिए। प्रवृत्ति के बिना जीवन-यात्रा नहीं चलती, इसलिए प्रवृत्ति करनी होती है। ये दो उद्देश्य हो सकते हैं। तीसरा प्रश्न है-कर्म कैसे करना चाहिए? यह भी महत्त्वपूर्ण बात है। यहां भी अध्यात्मवाद या कर्मवाद का रहस्य उद्घाटित होता है। जिस व्यक्ति ने कर्मवाद को नहीं समझा, उसने अध्यात्म को नहीं समझा। जिसने अध्यात्म को नहीं समझा, उसने कर्मवाद को नहीं समझा। दोनों परस्पर जुड़े हुए हैं। अध्यात्मवाद का रहस्य है कि कर्म राग-द्वेष-रहित भाव से होना चाहिए। राग-द्वेष जितना मंद हो सके, उतना करना चाहिए, उससे जो कर्मबंध होगा वह मंद होगा। कर्म के साथ जुड़ा हुआ है प्रतिकर्म अर्थात् कर्म का बंध। शास्त्रकार कहते हैं उल्लो सुक्को य दो छूटा, गोलिया मट्टिया मया / दो वि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो सो तत्थ लग्गई // मिट्टी के दो गोले हैं। एक है गीला और दूसरा है सूखा। गीली मिट्टी का गोला भीत पर फेंकने से वहां चिपक जाता है और सूखा गोला भींत पर लगकर जमीन पर आ गिरता है। जिस प्रवृत्ति के साथ 214 कर्मवाद