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________________ द्वारा की गई। व्याख्या का एक सूत्र है-वंशानुक्रम। आनुवंशिकता के कारण व्यक्ति अपराधी बनता है। पिता अपराधी था, पुत्र अपराधी बन गया। दादा अपराधी था, पोता अपराधी बन गया। इसमें हेरिडिटी कारण बनती है। वर्तमान में आनुवंशिकता विज्ञान के आधार पर इस पर बहुत विमर्श हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति में वंशानुक्रम से कुछ संस्कार मिलते हैं। पर यह समग्र नहीं है। दुनिया में कोई भी सिद्धांत, जो वाणी में उतरता है, वह समग्र नहीं होता। वाणी में यह क्षमता भी नहीं है कि वह समग्र सत्ता को अभिव्यक्त कर सके। उसकी क्षमता है; खण्ड का प्रतिपादन करना। वाणी स्वयं खण्ड है, फिर वह अखण्ड सत्य का प्रतिपादन कैसे कर सकती है! अखण्ड सत्य शब्द या वाणी का विषय नहीं बन सकता। इसीलिए अनेकान्त की भाषा में इसे अवक्तव्य कहा गया। अखण्ड सत्य जाना जा सकता है, पर कहा नहीं जा सकता। उपनिषद् में 'नेति, नेति' के द्वारा कथन किया गया है। यह भी नहीं, यह भी नहीं' निषेध करते चले जाओ। बुद्ध ने इसे अव्याकृत कहा है। अवक्तव्य, नेति और अव्याकृत-तीनों एक ही दिशा के पथिक हैं। समग्र सत्य का एक देश और काल में एक शब्द के द्वारा कभी प्रतिपादन नहीं किया जा सकता। इसलिए वह अवक्तव्य सत्य बन जाता है। जितने मत और सिद्धान्त हैं, वे सब सापेक्ष हैं। वे सब खण्ड के प्रतिपादक हैं। जब यह तथ्य हमारी बुद्धि में समाया रहता है, तब दृष्टिकोण समीचीन रहता है और जब हम खण्ड को अखण्ड मान लेते हैं, किसी एक सिद्धान्त को समग्र सत्य मान लेते हैं, वहां विभ्रम होता है, विपर्यास होता है और दृष्टिकोण मिथ्या बन जाता है। आचार्य सिद्धसेन ने अपने महत्त्वपूर्ण ग्रंथ 'सन्मति तर्क प्रकरण' ' में इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया है कि प्रत्येक विचार सत्य है, जब वह दूसरे विचारों का खण्डन नहीं करता है। जब वह दूसरे विचारों का खण्डन कर, केवल अपना ही अस्तित्व समर्पित करता है तो वह विचार मिथ्या बन जाता है। कोई भी विचार सर्वथा सत्य नहीं है। कोई भी विचार सर्वथा मिथ्या नहीं है। प्रत्येक विचार में सचाई है। प्रत्येक विचार ___ पर्दे की पीछे कौन? 201
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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