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________________ में भी कर्मवाद का गलत प्रयोग कर लिया जाता है। वह धर्म-दर्शन जीवन्त नहीं हो सकता जो वर्तमान की समस्या को समाधान न दे सके। उसकी प्रासंगिकता नहीं हो सकती। उसकी जीवन्तता नहीं हो सकती। वह मृत है, वह बुझी हुई ज्योति है। कोई कहे-मेरा दीया अतीत में बहुत प्रकाश करता था, पर यदि वह आज के अंधकार को नहीं मिटा सकता तो उसकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है। जो वर्तमान में प्रकाश करता है, वर्तमान के अंधेरे को मिटाता है, वही दीया उपयोगी होता है। उसकी उपयोगिता को कोई नकार नहीं सकता। यदि वह प्रकाश देने में असमर्थ है, अंधकार का भेदन करने में असमर्थ है तो वह मात्र मिट्टी का बर्तन है, और कुछ नहीं। इसी प्रकार वही कार्य, वही धर्म, वही अध्यात्म, वही चेतना हमारे लिए कार्यकर होती है जो वर्तमान की समस्याओं का समाधान दे सके। कर्मवाद वर्तमान की समस्या को समाहित करने में सक्षम है। वह बाधा या विघ्न नहीं है। कभी-कभी यह प्रश्न आता है कि यदि पूरे विश्व में समाजवाद या साम्यवाद आ जाएगा और गरीबी मिट जाएगी तो क्या कर्मवाद को धक्का नहीं लगेगा? ऐसा लगता है, मानो कि गरीबी मिटी और कर्मवाद का महल ढह गया। ऐसा कोई संबंध-सूत्र नहीं है कि कर्मवाद है तो गरीबी और अमीरी होनी ही चाहिए और यदि गरीबी नहीं रही तो कर्मवाद अर्थहीन हो गया। यह मिथ्या धारणा है। क्या संबंध है गरीबी-अमीरी का कर्मवाद के साथ? संभव है, भारतीय लोग इसीलिए चाहते हैं कि गरीबी और अमीरी दोनों बनी रहें, जिससे कि कर्मवाद को कोई आंच न आए। यदि एक रहेगी तो कर्मवाद समाप्त . हो जाएगा। ऐसा संबंध जोड़ दिया। गांव में बुढ़िया रहती थी। उसके पास एक मुर्गा था। वह बांग देता। लोग सूरज उगने की बात मान लेते। एक बार बुढ़िया नाराज हो गई। वह गांववालों से बोली-तुम लोग मुझे नाराज करते हो, पर याद रखना, मैं अपने मुर्गे को लेकर अन्यत्र चली जाऊंगी। मर्गा नहीं होगा तो बांग नहीं देगा। बांग नहीं देगा तो सूरज नहीं उगेगा, सूरज नहीं उगेगा तो प्रकाश नहीं होगा, प्रभात नहीं होगा। उस बुढ़िया ने परिवर्तन का सूत्र 161
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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