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________________ परिवर्तन का सूत्र कर्मवाद भारतीय दर्शन का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। उस पर कई दिनों तक चर्चा हुई है। अब हम उसकी निष्पत्ति पर विचार करें कि कर्मवाद को जिस रूप में समझा गया, क्या वह उचित है अथवा उसको किस रूप में समझा जाना चाहिए? ऐसा प्रतीत होता है कि कर्मवाद के विषय में अनेक मिथ्या मान्यताएं चल पड़ीं और उनके फलस्वरूप अनेक त्रुटिपूर्ण धारणाएं घर कर गईं। . यथार्थ में कर्मवाद निराशा का सूत्र नहीं है। वह परिवर्तन का सूत्र है। मनुष्य को बदलना चाहिए। यदि बदलने की बात छूट जाती है तो आदमी भी गढ़ा बन जाता है, वैसा गढ़ा जिसमें पानी भरा रहता है और सड़ान पैदा कर देता है। नदी का प्रवाह बहता रहता है, पानी चलता रहता है; उसमें कभी सड़ान पैदा नहीं होती। जब पानी प्रवाहमान न रहकर, गढ़े में गिर जाता है, तब गंदला हो जाता है, दुर्गन्धमय हो जाता है। जीवन एक प्रवाह है। वह निरन्तर प्रवाहित रहता है तो निर्मल बना रहता है। जब वह रूढ़ हो जाता है, जब रूढ़िवादी परम्पराएं या मान्यताएं उसे जकड़ लेती हैं, तब जीवन में भी सड़ान पैदा हो जाती है। आज के सामाजिक और वैयक्तिक जीवन में ऐसा प्रतीत होता है कि सड़ान पैदा हो गई है। इसका कारण है, हमने परिवर्तन के सूत्र को खो दिया, या उसको दूसरे रूप में पकड़ लिया। ___ जो व्यक्ति कर्मवाद को हृदयंगम कर लेता है, उसके मर्म को समझ लेता है, वह कहीं भी रूढ़िवादी नहीं हो सकता। वह बुराइयों से अपने आपको बहुत बचा लेता है। कर्मवाद का एक सूत्र है-अच्छे कर्म का परिवर्तन का सूत्र 186
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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