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________________ बन जाता है। पर ऐसा कभी होता नहीं। चेतना की ज्योति कम-से-कम हो, पर वह निरन्तर जलती रहती है। ___रूस के एक जीव वैज्ञानिक प्रो. तारासोव ने लिखा है-हमारा प्रत्येक सेल एक टिमटिमाता दीपक है। वह ऐसा दीपक है, जो निरन्तर जलता रहता है। प्रत्येक कोशिका अपने आप में एक पॉवरहाउस है। हम कह सकते हैं कि आत्मा का प्रत्येक प्रदेश ज्योतिर्मय है। प्रत्येक आत्मा में अन्तर्योति जलती रहती है। वह ज्योति कभी नहीं बुझती। वह निरन्तर प्रज्वलित रहती है। उसी का प्रकाश हमें त्याग की प्रेरणा देता है, त्याग की ओर ले जाता है। कर्म त्याग की ओर नहीं ले जाता। त्याग, संयम, संवर-ये किसी कर्म से नहीं होते। ये मात्र चेतना की प्रेरणा से होते हैं। ये स्वतंत्र हैं। हम स्वतंत्र भी हैं और परतंत्र भी हैं। हमारी चेतना हमें त्याग की ओर ले जाती है, इसलिए हम स्वतंत्र हैं। हमारा कर्तृत्व स्वतंत्र हैं। जहां चेतना का प्रश्न है, वहां हम स्वतंत्र हैं और जहां कर्म का प्रश्न है, वहां हम परतंत्र हैं। इस दृष्टि से हमारा दायित्व भी सापेक्ष होगा। जहां हम चेतना के साथ होते हैं, वहां हम स्वतंत्र हैं और जहां हम दूसरे के साथ होते हैं, वहां हम परतंत्र हैं। जब हम काल या नियति के प्रभाव में होते हैं, वहां हम परतंत्र बन जाते. है। हमारी स्वतंत्रता और परतंत्रता इस तथ्य पर निर्भर करती है कि हम किसके साथ होते हैं। जब हम चेतना के साथ होते हैं, अस्तित्व के साथ होते हैं तब हम पूर्ण स्वतंत्र होते हैं और जब हम कषाय के साथ होते हैं, नियति के साथ होते हैं तब हमारी स्वतंत्रता छिन जाती है। प्रश्न है कि स्वतंत्रता का विकास कैसे हो सकता है? परतंत्रता को कैसे कम किया जा सकता है? आदमी किस प्रकार अपने उत्तरदायित्व का अनुभव कर सकता है और कैसे अधिक-से-अधिक स्वतंत्र होकर परतंत्रता की बेड़ियों को काट सकता है? इस प्रश्न का उत्तर पाना है। प्रेक्षाध्यान स्वतंत्रता का घटक है। इससे चेतना का जागरण होता है और साधक अपने मूल स्रोत-आत्मा तक, प्रभु तक, परमात्मा तक पहुंचने में समर्थ होता है। 176 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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