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________________ वे अव्यवहार राशि के जीव कहलाते हैं और जो जीव वहां से निकलकर अन्यान्य योनियों में जाते हैं वे व्यवहार राशि के जीव कहलाते हैं। अव्यवहार राशि का तात्पर्य है कि जिनमें व्यवहार नहीं है, भेद नहीं है विभाग नहीं है। सब एक समान। ___अनन्तकाय जीव निगोद कहलाते हैं। वे एक साथ जन्म लेते हैं और एक साथ मरते हैं। वे एक साथ श्वास लेते हैं और एक साथ आहार करते हैं। इतना बड़ा साम्यवाद है कि मनुष्य उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। वहां अव्यवहार है, कोई व्यवहार नहीं, कोई भेद नहीं। वहां न कोई शासक है और न कोई शासित, न कोई स्वामी और न कोई सेवक। सब समान। वहां से निकलते ही जीव व्यवहार राशि में आ जाता है, व्यवहार में आता है, विभाग में आ जाता है। अव्यवहार राशि में सब जीवों के एक ही इन्द्रिय होती है। कोई भी जीव दो इन्द्रियों वाला नहीं होता। यहां से निकलते ही कोई दो इन्द्रिय वाला और कोई अधिक इन्द्रिय वाला हो जाता है। विभाग. बढ़ते जाते हैं। प्रश्न होता है कि वह वहां से क्यों निकलता है? कैसे निकलता है? अव्यवहार से व्यवहार में कैसे आता है? इसका उत्तर नहीं दिया गया। लगता है यह केवल नियति है, स्वाभाविक नियम है, सार्वभौम नियम है। इसका उत्तर इतना ही है कि ऐसा होता है। क्यों होता है-यह अप्रश्न है यहां। तर्क एक तत्त्व अवश्य है, पर वह सार्वभौम सत्ता नहीं है। वह ईश्वर नहीं कि सर्वत्र व्याप्त हो। तर्क सर्वत्र लागू नहीं होता। कहा भी गया है-“स्वभावे तार्किका भग्नाः'–स्वभाव में तर्क स्खलित हो जाता है। वह वहां लागू नहीं होता। अतर्क के स्थान में तर्क का प्रयोग समस्या पैदा करता है। जो व्यक्ति तर्क की मर्यादा और सीमा को नहीं जानता, वह गलत परिणाम पर पहुंचता है। एक तार्किक था। वह बाजार में घी खरीदने गया। उसने घी खरीदा। घी से भरा बर्तन लेकर वह घर की ओर लौट रहा था। उसके मन में एक विकल्प उठा-'घृताधारं पात्रं वा पात्राधारं घृतम्'–घी का आधार पात्र है या पात्र का आधार घी है? वह विकल्प में उलझ गया। तर्क भी तो एक विकल्प ही है। विकल्पातीत नहीं होता तर्क। केवल अनुभव
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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