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________________ अचेतन जगत् में जन्म और मृत्यु न कहकर, उत्पाद और व्यय होता है। इसका अर्थ है उसका एक रूप बनता है, दूसरा नष्ट हो जाता है। एक रूप का उत्पाद होता है और दूसरे का व्यय होता है, नाश होता है। उत्पाद और व्यय का चक्र, जन्म और मृत्यु का चक्र, रूपान्तरण का चक्र नियति है। वे शाश्वत नियम, जो चेतन और अचेतन पर घटित होते हैं, उन सारे नियमों का अर्थ है नियति। नियतिवाद बहुत बड़ी बात है। नियतिवादी जो कहते हैं-'जैसा नियति में है, वैसा होगा', यह त्रुटिपूर्ण प्ररूपणा है। इसमें अनेक बड़े-बड़े दार्शनिक चूके हैं। उन्होंने नियति-सार्वभौम नियम को सामान्य नियम के रूप में स्वीकार कर लिया, इसीलिए नियति का सिद्धान्त भ्रामक बन गया। नियति के वास्तविक अर्थ को समझने के लिए हमें यह मानना पड़ेगा कि नियम दो प्रकार के होते हैं 1. मनुष्यों द्वारा कृत नियम। 2. सार्वभौम नियम। मनुष्यों द्वारा कृत नियम नियति नहीं है। नियति वह है जो प्राकृतिक नियम है, स्वाभाविक और सार्वभौम नियम है। जो नियम जागतिक है, सब पर लागू होता है, वह है नियति। हम नियति के पंजे से नहीं छूट सकते। प्रत्येक व्यक्ति नियति से जुड़ा हुआ है, नियति के साथ चल रहा है। कोई भी इसका अपवाद नहीं है। ____ चर्चा बहुत गहरी है, पर आवश्यक है। जैन दर्शन में दो राशियां मानी गई हैं-एक व्यवहार राशि और दूसरी अव्यवहार राशि। इसका अर्थ है कि हमारी इस सृष्टि में अनन्त-अनन्त जीव ऐसे हैं जो वनस्पति संसार को छोड़कर दूसरी योनि में नहीं गए। वह वनस्पति जगत् जीवों का अक्षय स्थल है। उसमें से जीव उत्क्रमण करते हैं, और अन्यान्य विकसित योनियों में जन्म ग्रहण करते हैं। पर ऐसे भी उसमें अनन्त जीव हैं जो आज तक उस योनि से बाहर नहीं आए। वे वहीं जन्मते हैं और मरते हैं। फिर वहीं जन्मते हैं और मरते हैं। यह क्रम अनन्तकाल से चल रहा है। जो जीव उस वनस्पति योनि से कभी मुक्त नहीं होते उत्तरदायी कौन? 146
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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