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________________ से पूछा जाए तो वे सब यही कहेंगे कि दूरी का कारण मनुष्य नहीं है, यह सारा रसों के स्राव से होता है। स्राव संतलित नहीं हैं, इसलिए ये सारी गड़बड़ियां होती है। दो पहलू हैं हमारे सामने। एक है स्वतंत्रता का पहलू और दूसरा पहलू है परतंत्रता का पहलू। आदमी बहुत परतंत्र है अपने शरीर के भीतर पैदा होने वाले रसायनों के कारण तथा बाहर से आने वाले रसायनों के कारण। प्राचीन भारत में वाजीकरण, कामोद्दीपन आदि अनेक उद्देश्यों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के रसायन बनाए जाते थे और उनका प्रयोग भी होता था। आज भी यत्र-तत्र उन रसायनों के प्रयोग होते हैं। अच्छा आदमी रसायनों के प्रयोग से बुरा बन जाता है और बुरा आदमी अच्छा बन जाता है। आदमी के अच्छे बनने और बुरे बनने में भीतरी और बाहरी-दोनों प्रकार के रसायनों का हाथ होता है। इतना परतंत्र है आदमी! इतना बंधा हुआ है रसायनों से आदमी!। हमारी परतंत्रता का एक पहलू है रासायनिक प्रतिबद्धता। जीवन का दूसरा पहलू है-स्वतंत्रता का। जब साधना के द्वारा चेतना बदलती है तब रसायनों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। जहर का कार्य है मार डालना। क्या जहर मीरा को मार सका था? मीरा ने जहर का प्याला पीया कोई असर नहीं हुआ। भयंकर सर्प चंडकौशिक क्या महावीर को मार सका? उसकी फुफकार से आदमी राख का ढेर हो जाता था। उसने महावीर को कई बार डसा, पर व्यर्थ। महावीर पर कोई असर नहीं हुआ। - दक्षिण की एक घटना है। दो मुनि एक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ खड़े थे। एक चरवाहा पेड़ के नीचे बैठा था। इतने में एक काला नाग निकला। चरवाहा डरा और तत्काल पेड़ पर चढ़ गया। उसने सोचा दो आदमी आंखे बन्द कर निश्चल खड़े हैं। इन्हें सांप डस लेगा। वह सोच ही रहा था कि काला नाग फुफकारता हुआ उन दोनों मुनियों की ओर बढ़ा और अत्यन्त रोष में दोनों के डंक लगाए। रोष बढ़ता गया और उसने तीन-तीन बार उन्हें काटा। अंत में थककर चला गया। चरवाहा देख रहा था। उसने सोचा, सांप ने डंक मार दिया है। अब ये दोनों बेचारे परलोकधाम पहुंचने ही वाले हैं। बेचारे! बेचारे! वह देखता. रहा प्रतिबद्धता का प्रश्न 141
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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