________________ वहां रस आता है। एक पूरी प्रक्रिया है। प्रवृत्ति या भाव या अध्यवसाय से कर्मशरीर में एक स्पंदन होता है। वहां से एक तरंग चलती है। वह तरंग सूक्ष्म शरीर-तैजस शरीर में आती है। फिर आगे बढ़ती है और स्थूल शरीर में आती है। स्थूल शरीर में अनेक केन्द्र बने हुए हैं। वहां आकर वह तरंग रसायन पैदा करती है और तब वे रसायन हमारे आचरण को प्रभावित करते हैं। यह जटिलता है। कितना परतंत्र है आदमी! अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का रसायन सीधा रक्त के साथ मिलता है और आदमी उन रसायनों से प्रभावित जीवन जीता है। उन ग्रन्थियों के मुंह तो है नहीं। वे नलिका-विहीन ग्रन्थियां हैं। उनका स्राव सीधा रक्त में जा मिलता है। ___ एक आदमी सिद्धान्त की लम्बी-चौड़ी बातें करता है पर स्वयं आचरण नहीं कर पाता। यह ज्ञान और आचरण की दूरी, कथनी और करनी की दूरी या निर्लज्जता या ढिठाई आन्तरिक रसायनों के कारण होती है। वह कहता कुछ है और करता कुछ है, क्योंकि पिच्यूटरी का स्राव ठीक नहीं हो रहा है। जब तक पिच्यूटरी का स्राव समुचित नहीं होता, तब तक अन्तर्दृष्टि नहीं जागती और इसके बिना कथनी और करनी की दूरी मिट नहीं सकती। कुछ वर्ष पहले की बात है। अहिंसा पर सभा हुई और उसके अध्यक्ष बने बड़ौदा के नरेश गायकवाड़। अहिंसा विषय पर अनेक भाषण हुए। एक युवक भी बोला। उसका वक्तव्य बहुत प्रभावशाली रहा। उसने कहा-हिंसा का विरोध होना चाहिए और अहिंसा का विकास होना चाहिए। खान-पान की शुद्धि के विषय में उसका कथन सचोट था। लंबे समय तक बोलता रहा। पसीने से तर-बतर हो गया। उसने अपनी जेब से रूमाल निकाला पसीना पोंछने के लिए और विडंबना देखिए कि उस रूमाल के साथ उसकी जेब से एक अंडा भी आ गिरा पृथ्वी पर। गिरते ही वह फूट गया। ऐसे लोगों की कमी नहीं है दुनिया में जो वक्तव्य देने में माहिर होते हैं, पर आचरण करने में क्लीव। उनका एक पक्ष उजागर होता है, पर आचरण का पक्ष अत्यन्त कमजोर होता है। यह दूरी क्यों होती है? यदि मनोवैज्ञानिक, शरीरशास्त्री, रसायनविद् और वायोकेमिक विद्वान् 140 कर्मवाद