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________________ का भार भी 167 / पारा सोना हो गया। वैज्ञानिकों ने इसे सिद्ध कर दिखा दिया। इस पद्धति से बनाया गया सोना महंगा पड़ता है। इसलिए इस पद्धति का प्रयोग नहीं किया गया। किन्तु बात प्रामाणिक हो गई कि पारे से सोना बनता है। - महावीर ने कहा-तुम्हारी साधना प्रबल हो, तुम्हारी समता मजबूत हो तो पुराने बंधे हुए कर्मों का कितना ही उपचय हो, वह टूटने लग जाता है। पारा सोना बन गया। नये पाप कर्म तीव्र नहीं बंधेंगे, यह तो एक बात हो गई। जो पुराना संचय है, जो असत् है वह सत् में बदल जाता है, अशुभ शुभ में बदल जाता है, पाप पुण्य में बदल जाता है। यह नयी बात महावीर ने कही कि कर्मों को बदला जा सकता है। कर्मों की उदीरणा की जा सकती है। कर्म कब उदय में आएगा? कर्म का भंडार कब खाली होगा? यह अनन्तकाल की बात हो जाती है। किन्तु महावीर ने कहा-अपने परिणामों की ऐसी श्रेणी निर्मित करो जिसमें न राग हो और न द्वेष हो। कर्मों की उदीरणा करो, बंधे हुए कर्मों को खींचो और तोड़ते जाओ। विपाक की प्रतीक्षा मत करो। पहले ही उन्हें समाप्त करते जाओ। यह परिवर्तन का सिद्धांत कर्म पर बहुत बड़ा अंकुश है। . तीसरी बात-विपाक की सापेक्षता। कोई भी विपाक निरपेक्ष नहीं होता। वह देश, काल, भाव, पुद्गल, पुद्गल-परिणाम-इन सबके माध्यम से होता है। साधना के द्वारा हम निमित्तों को दूर करें, जो विकास में बाधक बनते हैं। हम ऐसे निमित्तों को विकसित करें, जो कर्म के विपाक को दूर कर सकें। विपाक निमित्तों से होता है। यह विपाक की सापेक्षता कर्म पर अंकुश है। - साधना करने वाला व्यक्ति, जिसमें साधना की थोड़ी-सी भी रुचि जाग ज़ाए वह कर्मशास्त्र के इन गूढ़तम रहस्यों को जाने और जानने के बाद अध्यात्म-शास्त्र के द्वारा आध्यात्मिक चेतना को पूर्णतः जागृत कर साधना में सफल बने। . कर्मवाद के अंकुश 131
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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