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________________ हैं। भरा हुआ खजाना खाली होने लगता है। एक ओर से यह रिक्त करने का कार्य चलता है, तब दूसरी ओर से यह कार्य भी आवश्यक हो जाता है कि रिक्त स्थान में नये सदस्य आकर न बैठ जायें। जो रिक्त हुआ है, बड़े कड़े परिश्रम से जो खाली हुआ है, वह फिर भर न जाये। पुराने जा रहे हैं, नये न आ जायें। हमारे चरित्र का निर्माण समता के तत्त्वों से हुआ। भरा हुआ रिक्त होने लगा। अब हमने सीमाओं की घेराबंदी करनी प्रारम्भ की, अपना संयम करना प्रारम्भ किया। मन को रोका, इन्द्रियों को रोका, शरीर और वाणी की चंचलता को भी रोका। जबरदस्त घेराबंदी की, संयम किया। अब नये अन्दर नहीं आ सकते। पुराने भागते गए, भागते गए। इस स्थिति में हमारा संयम सधा, हमारा चारित्र बना और संवर निष्पन्न हो गया। यह संवर की प्रक्रिया है। तत्त्व की व्याख्यामात्र से संवर नहीं होता। वह होता है साधना के द्वारा। वह होता है अभ्यास के द्वारा। आप जानते जाएं, रटते जाएं कि कर्म की अमक प्रकृतियों के क्षयोपशम के द्वारा संवर हो जायेगा, कभी संवर नहीं होगा। संवर तब होगा जब प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान तथा संयम और चारित्र-ये चारों तत्त्व हमारी साधना के अंग बनेंगे। जब संवर होता है तब मूर्छा का सघन वलय अपने आप टूटने लगता है और एक दिन पूर्ण जागरण की स्थिति उपलब्ध हो जाती है। उस अवस्था में केवल जागरण-ही-जागरण रहता है। ___कर्मशास्त्र को व्याख्यायित करने का और उसे समझने का यही परिणाम है, यही निष्कर्ष है कि यदि हम साधना करना चाहें तो हमें चैतन्य के अनुभव में आना होगा। हम ऐसे क्षण बिताएं जिनमें चैतन्य का अनुभव हो, केवल अपने अस्तित्व का अनुभव हो, राग-द्वेष का अनुभव न हो। कब- बिताएं? आचार के क्षणों में, व्यवहार के क्षणों में। हम कोई भी आचरण करें, किसी के साथ कोई व्यवहार करें, उन क्षणों में हम समता में रहें, समता का अनुभव करें। संवर स्वतः निष्पन्न होगा। हम सतत जागृत रहें। मन में या व्यवहार में राग-द्वेष की परिणति होते ही तत्काल उससे लौट आएं और संकल्प-शक्ति को जागृत करें। हमारा ऐसा दृढ़ संकल्प बने कि जिससे भविष्य में राग-द्वेष की परिणति 124 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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