________________ अध्ययन होने पर ही हम अध्यात्म के सही रूप को समझ सकते हैं और उसका उचित मूल्यांकन कर सकते हैं। अध्यात्म को समझने के लिए कर्मशास्त्र को समझना आवश्यक है। यह इसलिए आवश्यक है कि कर्मशास्त्र में हमारे आचरणों की कार्य-कारणात्मक मीमांसा है। हम जो भी आचरण करते हैं, उसके दो कारण होते हैं। एक है बाहरी कारण और दूसरा है भीतरी कारण। बाहरी कारण बहुत स्पष्ट होते हैं। एक आदमी चला जा रहा है। रास्ते में आग जल रही है। आग के निकट आते ही वह अपना पैर खींच लेता है। उसने अपना पैर क्यों खींचा, इसे हम स्पष्टता से समझ सकते हैं। कारण स्पष्ट है। रास्ते में आग थी। पैर नहीं खींचता तो पैर जल जाता। यह बाहरी कारण है। हमारी समझ में आ सकता है। कोई कठिनाई नहीं है। एक आदमी बीमार है। दवा ले रहा है। बीमार होने के कारण अस्वाभाविक प्रवृत्ति भी कर रहा है। उदास है, खिन्न है, और भी दूसरे-दूसरे आचरण कर रहा है। बीमारी के पीछे जो कारण है वह बाहरी कारण नहीं है। वह आंखों से दिखाई देने वाला कारण नहीं है। वह भीतरी कारण है। उस कारण की खोज करनी होगी। एक बीमार आदमी अस्वाभाविक आचरण कर रहा है, उसके पीछे कारण क्या है? रोग है। रोग का कारण क्या है? वह भीतरी कारण है। उस आंतरिक कारण को खोजने की जरूरत है। जहां आंतरिक कारण होता है वहां खोज का प्रश्न आता है और साथ-साथ विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत होते हैं। बीमार चिकित्सक के पास जाता है। बीमार को देखकर विभिन्न चिकित्सक भिन्न-भिन्न बातें कहते हैं वैद्या वदन्ति कफपित्तमरुद्विकाराः, ज्योतिर्विदो ग्रहगतिं परिवर्तयन्ति। भूताभिषंग इति भूतविदो वदन्ति, प्राचीनकर्म बलवद् मुनयो वदन्ति // वैद्य कहता है-तुम्हारे रोग का कारण यह है कि शरीर के कफ, 2 कर्मवाद