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________________ आचरण के स्रोत ज्ञान और अध्यात्म दो हैं। दोनों जरूरी हैं। ज्ञान के विना अध्यात्म का ग्रहण नहीं किया जा सकता और अध्यात्म में उतरे विना ज्ञान की शुद्धता नहीं हो सकती, ज्ञान का प्रस्फुटन नहीं हो सकता। ज्ञान अध्यात्म को बढ़ाता है और अध्यात्म ज्ञान को नये-नये उन्मेष देता है। पश्चिम के दार्शनिकों ने मन का काफी गम्भीर अध्ययन प्रस्तुत किया है। उन्होंने मन के विषय में अनेक खोजें की हैं, मन का पूरा विश्लेपण किया है। मनोविज्ञान की एक पूरी शाखा विकसित हो गयी। प्रश्न होता है कि भारत के सत्य-वेत्ताओं ने क्या मानसशास्त्र का अध्ययन नहीं किया था? इस प्रश्न के उत्तर में हम दो शाखाओं-योगशास्त्र और कर्मशास्त्र-पर ध्यान दें। : योगशास्त्र साधना की व्यवस्थित पद्धति है। इसके अन्तर्गत मन का पूरा विश्लेषण, मन की सूक्ष्मतम प्रक्रियाओं का अध्ययन और उसके व्यवहार का बोध आता है। . कर्मशास्त्र मन की गहनतम अवस्थाओं के अध्ययन का शास्त्र है। कर्मशास्त्र को छोड़कर हम मानसशास्त्र को ठीक व्याख्यायित नहीं कर सकते तथा मानस शास्त्र में जो आज अबूझ-गूढ़ पहेलियां हैं उन्हें समाहित नहीं कर सकते और न अध्ययन की गहराइयों में जा सकते हैं। कर्मशास्त्र के गंभीर अध्ययन का मतलब है-अध्यात्म की गहराइयों में जाने का एक गहरा प्रयत्न। जो केवल अध्यात्म का अनुशीलन करना चाहते हैं किन्तु कर्मशास्त्र पर ध्यान देना नहीं चाहते, वे न अध्यात्म की गहराइयों को ही समझ सकते हैं और न वहां तक पहुंच ही सकते हैं। इसलिए कर्मशास्त्र और योगशास्त्र तथा वर्तमान मानसशास्त्र-तीनों का समन्वित आचरण के स्रोत 1
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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