________________ PRESENTERT जीव विचार प्रकरण भावार्थ भवनपति देव दस प्रकार के, वाणव्यंतर देव आठ प्रकार के, ज्योतिष्क देव पांच प्रकार के, वैमानिक देव दो प्रकार के होते हैं // 24 // विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में देवता के भेदों का वर्णन किया गया है - (1) भवनपति देव - घर जैसे भवनों में रहने वाले भवनपति देव कहलाते हैं। इनके दस भेद हैं। रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक पृथ्वी के उपर का एक लाख अस्सी हजार योजन प्रमाण का थर प्रतर है, उसके उपर का एक हजार योजन का परिमाण एवं नीचे का एक हजार योजन का परिमाण छोडकर शेष 1,78,000 योजन परिमाण में भवनपति देव निवास करते हैं। ___ भवनपतिदेव दिखने कुमार की भाँति स्वरुपवान्, मनोहर एवं सुंदर होते हैं। इनकी गति मधुर एवं मंद-मंद होती है / (2) व्यंतर देव - भवनपति देव जिस 1,78,000 योजन परिमाण में रहते हैं, उसे उपर के हजार योजन परिमाण में से नीचे एवं उपर के दस-दस योजन छोडकर शेष 80 योजन में वाणव्यंतर एवं व्यंतर देव निवास कहते हैं। ये जंगलों, पहाडों एवं गुफाओं के अन्तरों में रहने के कारण व्यंतर एवं वाणव्यंतर कहलाते हैं। (3) ज्योतिष्क देव- मध्य लोक के ठीक मध्य में मेरुपर्वत है और मेरुपर्वत के मूल में आठ रुचक प्रदेश वाला समतल भूभाग है जिसका नाम समभूतला है / इस समभूतला प्रदेश से 900 योजन उपर एवं 900 योजन नीचे तक मध्य लोक है / इस प्रकार मध्य लोक (तिर्छा लोक) 1800 योजन प्रमाण विस्तृत है / समभूतला प्रदेश के उपरी 900 योजन में ज्योतिष्क देव स्थित है / वे प्रकाश (ज्योति) करते हैं, इस कारण उन्हें ज्योतिष्क देव कहते है / ज्योतिष्क देवों के क्षेत्र की अपेक्षा से दो भेद हैं(१) चर ज्योतिष्क - ढाई द्वीप (मनुष्य लोक) में जो ज्योतिष्क देव हैं एवं सदा '